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2. सामाइयं सम्मं काएणं न फासियं, न पालियं, न तीरियं,
न किट्टियं, न सोहियं, न आराहियं, आणाए अणुपालियं न भवइ, तस्स मिच्छामि दुक्कडं ॥।
3. सामायिक में दस मन के, दस वचन के, बारह काया के इन बत्तीस दोषों में से किसी भी दोष का सेवन किया हो तो तस्स मिच्छा मि दुक्कडं ।।
सामायिक में स्त्री कथा', भक्त कथा, देश कथा, राज कथा इन चार विकथाओं में से कोई विकथा की हो तो तस् मिच्छा मि दुक्कडं ।।
सामायिक में आहार संज्ञा, भय संज्ञा, मैथुन संज्ञा, परिग्रह संज्ञा, इन चार संज्ञाओं में से किसी भी संज्ञा का सेवन किया हो तो तस्स मिच्छामि दुक्कडं ॥।
सामायिक में अतिक्रम, व्यतिक्रम, अतिचार, अनाचार का जानते, अजानते, मन, वचन, काया से किसी भी दोष का सेवन किया हो तो तस्स मिच्छामि दुक्कडं । ।
4.
5.
6.
1.
श्राविकाएँ 'स्त्री कथा' के स्थान पर 'पुरुष कथा' बोलें।
{7} श्रावक सामायिक प्रतिक्रमण सूत्र