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दिशा परिमाण व्रत के आगार 1. मैंने जिन दिशाओं की मर्यादा की है उसके बाहर तार या पत्र
व्यवहार करना पड़े, माल मँगाना पड़े या भेजना पड़े, मुनीम या
वकील को भेजना पड़े तो आगार है। 2. राजा आदि की आज्ञा से अथवा आकस्मिक दैवी घटना से की गई
मर्यादा का उल्लंघन हो जाय तो आगार है। 3. यदि धर्म कार्य निमित्त मर्यादा से बाहर जाना पड़े, बीमारी के कारण
तथा निद्राधीन या बेहोशी में मर्यादा का उल्लंघन हो जाय तो
आगार हैं। 4. पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण इन चारों दिशाओं की जो मर्यादा बाँधी
है, उसके अन्दर ही कोई जमीन यदि स्वाभाविक ऊँची, नीची हो
और वहाँ जाना पड़े तो आगार हैं। दिशा परिमाण व्रत की शिक्षाएँ 1. हे आत्मन् ! इस संसार में परिभ्रमण करते हुए मुझे अनंत कालचक्र
व्यतीत हो गये हैं और एक आकाशप्रदेश भी ऐसा नहीं बचा जिसका तूने स्पर्श नहीं किया हो, अतः अब शान्ति से स्थिरता के सिंहासन
पर बैठकर आत्मानंद का पान कर । 2. बाहर में सुख की खोज करना मूर्खता है, अतः अपने निज घर में
प्रवेश कर। 3. हे आत्मन् ! तूने दिशाओं की मर्यादा करली है, तो अब उसके बाहर
अपने मन को भी मत जाने दे। तार, टेलिफोन, चिट्ठी का भी जहाँ तक बन सके विवेक रख।