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आ गई हो इत्यादि विकृत चीजों को खाने पीने के काम में नहीं लाना
चाहिए, क्योंकि वे सभी अभक्ष्य हैं। 8. मृतक की राख और हड्डियाँ (फूल) नदी, तालाब आदि में नहीं
डालना चाहिए, क्योंकि राख और हड्डी के खार से पानी के त्रस
जीव भी मर जाते हैं। 9. वृद्ध पशुओं को आवारा नहीं फिरने देना चाहिए। पशुओं को कसाई
के हाथों नहीं बेचना चाहिए एवं जानवरों के अंग-उपांग बिना कारण
निर्दयी बुद्धि से छेदन नहीं करना चाहिए। 10. प्राणी वध से निर्मित वस्तुओं का फैशन एवं विलास में उपयोग नहीं
करना चाहिए। जैसे पंखोंवाली पोशाकें, हाथी दाँत की वस्तुओं का
और सभी प्रकार के सौन्दर्य प्रसाधनों आदि का, क्योंकि इनसे हिंसा में उत्तेजना मिलती है। 11. बिरादरी आदि में अथवा अन्य किसी भी जीमनवार में जूठा नहीं
डालना चाहिए। 12. अष्टमी, चतुर्दशी, अमावस्या, पक्खी पर्व आदि के दिनों में हरी
सब्जी या फल (फूट) आदि खाने का त्याग रखना चाहिए। पर्युषण के आठ दिनों में सभी प्रकार की लीलोतरी (हरी) खाने का त्याग
करना चाहिए। 13. मृत शरीर में एक घड़ी (24 मिनिट) पश्चात् असंख्य सम्मूर्छिम
जीव उत्पन्न हो सकते हैं, अतः मृत शरीर को अधिक समय तक
नहीं रखना चाहिए। 14. वैर-विरोध व विराधना से बचते रहना चाहिए।
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