SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 84
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पाप-पुण्य का आधार : संक्लेश-विशुद्धि 35 ऊपर यह कहा गया है कि पाप-पुण्य संक्लेश-विशुद्धि पर अवलंबित है, अर्थात् कर्मों का शुभाशुभत्व उनके कर्ता के शुभाशुभ भावों पर अवलंबित है। कर्ता के शुभाशुभ भावों का कर्मों के रूप में प्रकटीकरण उन कर्मों के प्रकृति व अनुभाव के रूप में होता है। शुभभावों से पुण्य कर्म प्रकृतियों के अनुभाव की एवं अशुभभाव से पाप प्रकृतियों के अनुभाव की वृद्धि होती है। शुभ (पुण्य) कर्म प्रकृतियों में यह अनुभाव की वृद्धि विशुद्धि से, कषायादि दोषों की कमी से होती है और अशुभ (पाप) कर्म प्रकृतियों में यह अनुभाव की वृद्धि संक्लेश से अर्थात् कषायादि दोषों की वृद्धि से होती है। अत: पाप-पुण्य कर्मों का एवं उनकी न्यूनाधिकता का आधार उनका अनुभाव है, प्रदेश व स्थिति बंध नहीं है क्योंकि कर्मों के प्रदेशों के न्यूनाधिक होने से उनके अनुभाव न्यूनाधिक नहीं होता है और पाप-पुण्य दोनों प्रकार के कर्मों का स्थितिबंध कषाय से होता है। अतः स्थितिबंध पाप कर्मों का अधिक हो अथवा पुण्य कर्मों का, तीन शुभ आयुकर्मों के अतिरिक्त समस्त कर्म प्रकृतियों का अशुभ ही है। इसलिए पुण्य-पाप कर्मों के शुभत्व-अशुभत्व का आधार उनका अनुभाव ही है। कम जयधवला टीका के उपर्युक्त उद्धरण में संक्लेश और विशुद्धि की परिभाषा देते हुए कषाय शब्द के पहले समुत्पन्न विशेषण लगाया गया है जो वर्तमान क्षण में उत्पन्न कषाय का अर्थात् उदयमान, विद्यमान कषाय का सूचक है। इसका अभिप्राय यह है कि संक्लेश - विशुद्धि का संबंध वर्तमान में उदयमान-विद्यमान कषाय में वृद्धि व हानि होने से हैं, कषाय व अधिक कषाय से नहीं है । यदि कम कषाय को विशुद्धि और अधिक कषाय को संक्लेश माना जाय तो सदैव शुक्ल लेश्या की अवस्था को विशुद्धि और कृष्ण लेश्या की अवस्था को संक्लेश मानना होगा। इस प्रकार दसवें सूक्ष्म संपराय गुणस्थान में शुक्ल लेश्या होने से विशुद्धि ही मानना होगा। संक्लेश नहीं माना जा सकेगा। जिससे भगवती सूत्र के शतक 25
SR No.034369
Book TitlePunya Paap Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year2017
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy