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________________ पाप ही त्याज्य है, पुण्य नहीं इस जीवन में किए हुए सत्कर्म इस जीवन में भी शुभ (सुखदायी ) फल देने वाले होते हैं। इस जीवन में किए हुए सत्कर्म अगले जीवन में भी शुभ (सुखदायी) फल देने वाले होते हैं। - स्थानांग 4.2 25 जह वा विसगंडूस कोई घेत्तूण नाम तुण्डिक्को । अण्णेण अदीसंतो किं नाम ततो न व मरेज्जा ।। जिस प्रकार कोई लुक छिपकर विष पी लेता है, क्या वह विष से नहीं मरेगा? अवश्य मरेगा । उसी प्रकार जो छिपकर पाप करता है तो क्या वह पाप उसके लिये घातक नहीं होगा ? अवश्य होगा। - सूत्रकृतांग, निर्युक्ति गाथा 52 सकम्मुणा विप्परियासमुवेइ। प्रत्येक प्राणी अपने ही कृत कर्मों से दु:ख पाता है। -सूत्रकृतांग 1.7.11 तुट्टंति पावकम्माणि, नवं कम्ममकुव्वओ ।। जो नये कर्म नहीं करता है अर्थात् संवर करता है उसके पूर्वबद्ध पाप कर्म भी नष्ट हो जाते हैं। -सूत्रकृतांग 1.15.5 कत्तारमेव अणुजाइ कम्मं ।। कर्म सदा कर्त्ता का ही अनुगमन करते हैं अर्थात् कर्म का बंधकर्ता के भावों के अनुसार ही होता है। अणुमित्तो वि न कस्सई, बंधो परवत्थुपच्चओ भणिओ। पर (बाह्य) वस्तु के आधार पर किसी को अणुमात्र भी कर्म बंध नहीं होता है, (कर्म बंध अपनी भावना के आधार पर ही होता है)। -ओघनिर्युक्ति, 57
SR No.034369
Book TitlePunya Paap Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year2017
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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