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-- पुण्य-पाप तत्त्व गच्छन्ति? गोयमा! पाणाइवायवेरमणेणं जाव मिच्छादसणसल्लवेरमणं एवं खलु गोयमा! जीवा लहुयत्तं हव्वमागच्छन्ति, एवं संसारं आउलीकरेंति एवं परित्तीकरेंति दीहीकरेंति हस्सीकरेंति एवं अणुपरियटुंति एवं वीइवयंति। पसत्था चत्तारि अप्पसत्था चत्तारि।।
-भगवती शतक 1, उद्देशक 9, सूत्र 72 तथा शतक 12, उद्देशक 2, सूत्र 442
अर्थ-भगवन्, जीव किस प्रकार गुरुत्व-भारीपन को प्राप्त होते है? गौतम! प्राणातिपात, मृषावाद आदि अठारह पापों का सेवन करने से जीव शीघ्र गुरुत्व को प्राप्त होते हैं। भगवन् ! जीव किस प्रकार लघुत्व को प्राप्त होते है? गौतम! प्राणातिपात आदि अठारह पापों के त्याग से शीघ्र लघुत्व (हलकापन) को प्राप्त होते हैं। इस प्रकार प्राणातिपात आदि पापों का सेवन करने से जीव (1) गुरुत्व को प्राप्त होते हैं, (2) संसार को बढ़ाते हैं, (3) संसार को लम्बे काल का करते हैं और (4) बार-बार भव-भ्रमण करते हैं तथा प्राणातिपात आदि पापों का त्याग करने से जीव (1) लघुत्व को प्राप्त करते हैं, (2) संसार को घटाते हैं, (3) संसार को अल्पकालीन करते हैं और (4) संसार को पार कर जाते हैं। इनमें से चार (हलकापन आदि) प्रशस्त हैं और चार (भारीपन आदि) अप्रशस्त हैं।
(2) कोहो पीइं पणासेइ, माणो विणयनासणो। माया मित्ताणि नासेइ, लोहो सव्वविणासणो।।
__-दशवैकालिक 8.38 क्रोध प्रीति को नष्ट करता है, मान विनय का नाश करता है, माया मित्रता का नाश करती है और लोभ सर्वस्व नष्ट कर देता है।
(3) पूयणट्ठा जसोकामी, माणसम्माणकामए। बहुं पसवइ पावं, मायासल्लं च कुव्वइ।।
___-दशवैकालिक सूत्र, 5.2.35 अपनी पूजा-प्रतिष्ठा चाहने वाला, यश की कामना करने वाला