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________________ 226 --- पुण्य-पाप तत्त्व विषय सुख-कामना पूर्ति से मिलता है, यह मानना भूल है। कामना पूर्ति का अर्थ है-कामना का न रहना, कामना का अभाव होना। अत: यह सुख भी कामना के अभाव से, चित्त के शांत होने से मिलता है, वस्तु, व्यक्ति, परिस्थिति से नहीं। यदि सुख वस्तु, व्यक्ति, परिस्थिति आदि से मिलता तो इन सबके विद्यमान रहते हुए यह सुख बना रहना चाहिए था और इन सबकी वृद्धि के साथ इस सुख में भी वृद्धि होती जानी चाहिए थी, परंतु ऐसा नहीं होता है। यह सुख कुछ क्षणों से अधिक प्रतीत नहीं होता है तथा भोग्य-वस्तुओं की वृद्धि सैकड़ों हजारों गुना हो जाने पर भी, सुविधाओं के बढ़ जाने पर भी सुख में वृद्धि नहीं होती है। अपितु सुख पाने की कामनाएँ दिन-दुगुनी रात चौगुनी बढ़ती जाती है, जिसकी पूर्ति न होने से सुख का अभाव अधिकाधिक बढ़ता जाता है। अभाव का बढ़ना दीनता व दरिद्रता का द्योतक है। विषय-भोग के सुख की कामना की उत्पत्ति व अपूर्ति अशांति की और पूर्ति पराधीनता की जननी है। कामना पूर्ति क्षोभ, खिन्नता व दु:ख की जननी है। अत: विषय सुख अशांति, पराधीनता व खिन्नता में आबद्ध करता है जिससे प्राणी की शांति, स्वाधीनता व प्रसन्नता का अपहरण हो जाता है, विघ्न उत्पन्न हो जाता है। कर्म-सिद्धांतानुसार कर्म का विपाक वैसा ही होता है, जैसा भाव होता है। दुर्भावों का फल अशुभ, दु:खद तथा सद्भावों का फल शुभ-सुखद मिलता है। शुभ भावों से शुभ अनुभाव वाले पुण्य कर्म का और अशुभ भावों से अशुभ अनुभाव के पाप कर्म का सर्जन होता है। शुभ अनुभाव शांति, प्रसन्नता व सम्पन्नता के सुख का और अशुभ अनुभाव अशांति, खिन्नता, चिंता, भय, द्वन्द्व, दीनता व दरिद्रता का हेतु होता है। कर्म के इस अकाट्य, सनातन नियम का कोई अपवाद नहीं है। कोई दु:ख, विपत्ति, अप्रिय,
SR No.034369
Book TitlePunya Paap Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year2017
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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