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________________ 222 पुण्य-पाप तत्त्व वित्तेण ताणं न लभे पमत्ते, इमंमि लोए अदुवा परत्था । दीवप्पणट्ठेव अणंतमोहे, नेआउयं दट्टुमदट्टुमेव । । -उत्तराध्ययन सूत्र, अध्ययन 4, गाथा 5 त्राण भावार्थ-प्रमादी मनुष्य इस लोक में अथवा परलोक में धन (संरक्षण) नहीं पाता है। जिस प्रकार दीपक बुझने पर देखा हुआ मार्ग भी दिखाई नहीं देता है उसी प्रकार अनंत मोह से ग्रस्त (लोभांध) व्यक्ति अपने ज्ञान से जाने हुए न्याय (सत्य) मार्ग को देखते हुए भी नहीं देखता है। मोहांध, लोभांध व्यक्ति सत्य मार्ग को देखता, जानता हुआ भी अनदेखा कर देता है, उस पर नहीं चलता है। वियाणिया दुक्खविवद्वणं धणं, ममत्त बंधं च महाभयावहं । सुहावहं धम्मधुरं अणुत्तरं, धारेज्ज निव्वाणगुणावहं महं ।। -उत्तराध्ययन सूत्र, अध्ययन 19, गाथा 99 भावार्थ-धन को दु:खवर्द्धक और ममता के बंधन को महाभयंकर जानकर निर्वाण (मोक्ष) के गुणों को प्राप्त कराने वाली एवं अनंत सुख प्रदायक अनुत्तर धर्म की महाधुरा को धारण करे । इस गाथा में भगवान ने स्पष्ट शब्दों में धन को दुःख वृद्धि का कारण कहा है, सुख-प्राप्ति व पुण्योदय का फल नहीं बताया है और धर्म को अर्थात् परिग्रहादि पापों के त्याग से उत्पन्न होने वाले गुणों को सुख का कारण कहा है। न कम्मुणा कम्मं खवेंति बाला, अकम्मुणा कम्मं खवेंति धीरा। मेहाविणो लोभमयावतीता, संतोसिणो नो पकरेंति पावं ।। -सूत्रकृतांग श्रुतस्कंध अध्ययन 12, गाथा 15 भावार्थ-बाल जीव कर्म से कर्म का क्षय करना चाहते हैं, परंतु कर्म से कर्म का क्षय नहीं होता, अतः कर्म करने से कर्म क्षय नहीं होते हैं। धीर पुरुष कर्म (कर्तृत्वभाव) रहित होकर कर्म का क्षय करते हैं। लोभ और
SR No.034369
Book TitlePunya Paap Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year2017
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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