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अनुकम्पा से पुण्यासव व कर्म-क्षय दोनों होते हैं
श्री वीरसेनाचार्य ने कसायपाहुड की जयधवला टीका की पुस्तक 1 के पृष्ठ 52 पर ‘पुण्णास्सवभूदा' गाथा में पुण्यास्रव का कारण अनुकम्पा व शुद्धोपयोग को बताया है। इससे यह तथ्य प्रकट होता है कि जो कार्य शुद्ध भाव से होते हैं, वे ही कार्य अनुकम्पा से भी होते हैं। क्योंकि शुभ भाव शुद्ध का ही क्रियात्मक रूप है। वास्तविकता तो यह है कि शुद्ध भाव से आत्मा निर्मल, पवित्र होती है जिससे आत्मा के दर्शन गुण का लक्षण 'संवेदनशीलता' बढ़ता है। यह संवेदनशीलता अनुकम्पा, वात्सल्य, दया, करुणा भाव के रूप में प्रकट होती है। ये सब दर्शन (स्व-संवेदन) गुण की ही अभिव्यक्तियाँ हैं, अत: स्वभाव हैं। उत्तराध्ययन सूत्र अध्ययन 28 गाथा 30 में सम्यग्दर्शन के आठ आचार कहे हैं, उनमें एक वात्सल्य भी है। वसुनन्दी श्रावकाचार में गाथा 49 में सम्यग्दर्शन के आठ गुण कहे गए हैं, उनमें वात्सल्य और अनुकम्पा भी हैं। सम्यग्दर्शन के पाँच लक्षण कहे हैं, उनमें अनुकम्पा भी है।
आशय यह है कि अनुकम्पा व वात्सल्य सम्यग्दर्शन के अभिन्न अंग हैं। सम्यग्दर्शन स्वभाव है। स्वभाव होने से धर्म है। इसलिये सम्यग्दर्शन के