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पुण्य-पाप तत्त्व
उदय को पुण्य के उदय में एवं असातावेदनीय के उदय को पाप के उदय में ग्रहण किया गया है, जो उचित लगता है। अतः उपर्युक्त विवेचन के अनुसार पुण्य और पाप की चौकड़ी इस प्रकार है
1. पापानुबंधी पाप-असातावेदनीय के उदय में संक्लेश भावों से होने वाला कर्मबंध पापानुबंधी पाप है।
2. पुण्यानुबंधी पाप - असातावेदनीय के उदय में विशुद्ध भावों से होने वाला कर्मबंध पुण्यानुबंधी पाप है।
3. पापानुबंधी पुण्य - सातावेदनीय के उदय में संक्लेश भावों से होने वाला कर्मबंध पापानुबंधी पुण्य है।
4. पुण्यानुबंधी पुण्य - सातावेदनीय के उदय में विशुद्ध भावों से होने वाला कर्मबंध पुण्यानुबंधी पुण्य है।