SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 212
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (19) पुण्य-पाप के अनुबंध की चौकड़ी चउन्विहे कम्मे पण्णत्ते, तंजहा-सुभे णाममेगे सुभे विवागे, सुभे णाममेगे असुभविवागे, असुभे णाममेगे सुभविवागे, असुभे णाममेगे असुभ विवागे।। -स्थानांग 4, उद्देशक 4, सूत्र 603 कर्म चार प्रकार का है 1. शुभ और शुभ विपाक-कोई कर्म शुभ होता है और उसका विपाक भी शुभ होता है। 2. शुभ और अशुभ विपाक-कोई कर्म शुभ होता है और उसका विपाक अशुभ होता है। 3. अशुभ और शुभ विपाक-कोई कर्म अशुभ होता है और उसका विपाक शुभ होता है। 4. अशुभ और अशुभ विपाक-कोई कर्म अशुभ होता है और उसका विपाक भी अशुभ होता है। इनमें से दूसरे एवं तीसरे भंग संक्रमण करण से संभव हैं। पुण्य-पाप के अनुबंध के चार प्रकार हैं-1. पापानुबंधी पाप-पाप के उदय में पाप कर्म का बंध होना, 2. पुण्यानुबंधी पाप-पाप के उदय में पुण्य का बंध होना। 3. पापानुबंधी पुण्य-पुण्य के उदय में पाप का
SR No.034369
Book TitlePunya Paap Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year2017
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy