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________________ 90 - पुण्य-पाप तत्त्व "कोहविजएणं खंतिं जणयइ" -उत्तराध्ययन सूत्र, अध्ययन 29, सूत्र 67 खमावणयाए णं पल्हायणभावं जणयइ। पल्हायणभावमुवगए य सव्व-पाण-भूय-जीव-सत्तेसु मित्तीभावमुप्पाएइ।। -उत्तराध्ययन सूत्र, अध्ययन 29, सूत्र 17 “सर्वप्राणिषु मैत्री अनुकम्पा" -राजवार्तिक अध्ययन 1, सूत्र 2 अर्थात् क्रोध के विजय (क्षय) से क्षमा गुण प्रकट होता है। क्षमापना से मैत्रीभाव उत्पन्न होता है और सर्व प्राणियों के प्रति मैत्रीभाव होना ही अनुकम्पा है। अनुकम्पा से ही सातावेदनीय कर्म का उपार्जन होता है। तात्पर्य यह है कि क्रोध कषाय के क्षय (क्षीणता) से सातावेदनीय कर्म का उपार्जन होता है, साथ ही चारित्र मोहनीय कर्म का क्षय भी होता है। जैसा कि कहा है अणुस्सुयाए णं जीवे अणुकंपए, अणुब्भडे, विगयसोगे, चरित्तमोहणिज्जं कम्मं खवेइ।। -उत्तराध्ययन सूत्र, अध्ययन 29, सूत्र 29 __ अर्थ-प्राणी में विषयों के प्रति विरति से अनुकंपा पैदा होती है तथा वह उद्धत एवं शोक रहित होकर चारित्र मोहनीय कर्म का क्षय कर देता है, जिससे वीतरागता की उपलब्धि होती है। अभिप्राय यह है कि कषाय के क्षय से क्षमा गुण, क्षमा से मैत्रीभाव, मैत्रीभाव से अनुकंपा गुण प्रकट होता है। क्षमाशीलता आदि गुणों से युक्त जीव ही सब जीवों के प्रति वैरभाव का त्याग कर उनके सब अपराधों को क्षमा कर सकता है जैसा कि कहा है-कोहो पीइं पणासेइ (दशवैकालिक सूत्र, अध्ययन 8, गाथा 38) अर्थात् क्रोध प्रीति का नाश
SR No.034369
Book TitlePunya Paap Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year2017
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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