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________________ जीव-अजीव तत्त्व एवं द्रव्य की गई है-“जल को सभी बाहरी तत्त्वों से मुक्त कर दिया जाय, तो उसकी मजबूती बढ़ जाती है। वस्तुतः इस प्रकार के कई परीक्षणों में वैज्ञानिकों ने पानी की धार के सहारे ‘बोट' टिका दिये, फिर भी पानी का तार नहीं टूटा।"1 एक विशेष प्रकार का भारी जल होता है जो आणविक विद्युत्-संयंत्रों में उपयोग में आता है। यह जल बहुमूल्य धातुओं के समान मूल्यवान होता है। प्रत्येक प्रकार के जल की प्रत्येक योनि व कुल में भी अपनी विशेषता होती है। जल की हिम जाति को ही लें-इसके पर्वतीय हिमकुल व यांत्रिक हिमकुल इन दोनों के गुणों में अंतर है। जल की उष्ण जाति को लें। निर्झरों के उष्ण जल, कुओं के उष्ण जल व सरिताओं के उष्ण जल में गुण व विशेषताओं की दृष्टि से भिन्नता है। किसी जाति या कुल की प्रकृति रोगशामक है तो किसी की रोग-उत्पादक वर्धक। दरभंगा जिले के डालसिंह थाना गाँव के एक कुएँ के जल में रोगों को शांत करने की चमत्कारिक शक्ति बतलाते हैं। इसी हेतु वहाँ हजारों व्यक्ति प्रतिदिन पहुँचते हैं। बड़ौदा और बलसाड़ की सीमा पर 'उनाय' नाम के उष्ण जल के झरने हैं। इनसे गठिया, वातरोग, कमर का दर्द आदि दूर होते हैं। हम अपने दैनिक जीवन में देखते हैं कि साधारणतः हल्का जल सुपाचक होता है जबकि भारी जल दुष्पाचक। वस्त्र की धुलाई में पड़ने वाले प्रभाव के अंतर से भी जल की भिन्नता का पता स्पष्टत: चल जाता है। तात्पर्य यह है कि जल एक ही प्रकार का न होकर अनेक योनि व कुल वाला है। जलकाय की अपनी अनेक विशेषताएँ हैं। जिस प्रकार भूमि पर गंगा, सिंधु, ब्रह्मपुत्र आदि हजारों मील लम्बी नदियाँ अपने निश्चित मार्ग 1. नवनीत, जुलाई 1959, पृष्ठ 36
SR No.034365
Book TitleVigyan ke Aalok Me Jeev Ajeev Tattva Evam Dravya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherAnand Shah
Publication Year2016
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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