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________________ (14) पायी जाती है तथा ये स्थावर कहे जाते हैं। इनमें से वायु एवं तेजस् के गतिशील होने के कारण इन्हें किसी अपेक्षा से त्रस कहा गया है (तेजोवायुद्वीन्द्रियादयश्च त्रसा:-तत्त्वार्थ सूत्र) अन्यथा द्वीन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय तक के जीव ही त्रस कहे जाते हैं। गतिशील होने के कारण अन्य दर्शनों में इन्हें जंगम कहा गया है। वनस्पतिकाय में आहार, भय, मैथुन एवं परिग्रह रूप चार संज्ञाओं, क्रोध, मान, माया एवं लोभ रूप चार कषायों, कृष्णादि चार लेश्याओं की भी लेखक ने विविध वैज्ञानिक उदाहरण देकर पुष्टि की है। पेड़-पौधे कितने संवेदनशील होते हैं यह इस पुस्तक में भली-भाँति पुष्ट हुआ है। पेड़-पौधों में पायी जाने वाली विचित्र विशेषताएँ भी रोचक बन पड़ी हैं। कुछ पेड़-पौधे सच-झूठ को पहचानते हैं। तथा मनुष्य की भाँति सहानुभूति दिखा सकते हैं। अजीव द्रव्य पाँच प्रकार का है-धर्म, अधर्म, आकाश, काल और पुद्गल इनमें से काल अप्रदेशी है तथा शेष चार द्रव्य अस्तिकाय रूप हैं। धर्म द्रव्य गति में सहायक निमित्त है, अधर्म द्रव्य स्थिति में सहायक निमित्त है, आकाश समस्त द्रव्यों को स्थान देता है तथा काल वर्तना लक्षण युक्त है। धर्मद्रव्य की समता ईथर से, अधर्मद्रव्य की समता गुरुत्वाकर्षण से की गई है। आकाश एवं काल विज्ञान के लिए अपरिचित नहीं है, किंतु आकाश के आगमिक वर्णन एवं वैज्ञानिक वर्णन में अनुपम समानता, इसका आभास इस पुस्तक से पाठकों को अवश्य होगा। जैनधर्म में काल की सूक्ष्मतम इकाई 'समय' है जो वर्तमान आणविक घड़ियों से मापे गए सूक्ष्मतम काल से भी छोटा है। लेखक ने काल का अत्यन्त वैज्ञानिक ढंग से वर्णन किया है। 'पुद्गल' जैनदर्शन का ऐसा पारिभाषिक शब्द है जिसके अन्तर्गत विज्ञान सम्मत समस्त पदार्थों का समावेश हो जाता है। आगमों में उस
SR No.034365
Book TitleVigyan ke Aalok Me Jeev Ajeev Tattva Evam Dravya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherAnand Shah
Publication Year2016
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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