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________________ ( 8 ) इनमें से पृथ्वीकाय से लेकर वनस्पतिकाय तक के जीवों में एक स्पर्शनेन्द्रिय पायी जाती है तथा ये स्थावर कहे जाते हैं। इनमें से वायु एवं तेजस् के गतिशील होने के कारण इन्हें किसी अपेक्षा से त्रस कहा गया है (तेजोवायू द्वीन्द्रियादयश्च त्रसाः- तत्त्वार्थ सूत्र 2/14) अन्यथा द्वीन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय तक के जीव ही त्रस कहे जाते हैं। गतिशील होने के कारण अन्य दर्शनों में इन्हें जंगम कहा गया है। सकाय के द्वीन्द्रियादि जीवों तथा वनस्पतिकाय में जीवत्व स्वीकार करने के संबंध में विज्ञान के समक्ष अब कोई प्रश्न नहीं रहा है। भारतीय वैज्ञानिक जगदीशचन्द्र बसु ने पेड़-पौधों में जीवन सिद्ध करते हुए उनमें मनुष्य की भाँति श्वसन, आहार- ग्रहण, विसर्जन आदि क्रियाओं को भी सिद्ध किया है। अभी तक पृथ्वीकाय, अप्काय (जलकाय) तेजस्काय (अग्निकाय) एवं वायुकाय में जीवत्व सिद्धि का कार्य वैज्ञानिकों के लिए करणीय है। लेखक ने वैज्ञानिकों के द्वारा किए गए कार्यों का उल्लेख करते हुए पृथ्वीकाय आदि की विभिन्न विशेषताओं का वर्णन किया है। लेखक का तर्क है कि पृथ्वीकाय में जीवन है, क्योंकि पृथ्वीकाय में जन्म, मरण एवं वृद्धि होती है। अप्काय की एक बूंद में लाखों जीवों का होना वैज्ञानिकों ने स्वीकार ही किया है। तेजस्काय में श्वसन क्रिया है, उसे ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है इसलिए उसमें भी जीवन है तथा वायुकाय के वैक्रिय स्वरूप को देखकर उनमें जीवत्व की सिद्धि होती है। वनस्पतिकाय में आहार, भय, मैथुन एवं परिग्रह रूप चार संज्ञाओं, क्रोध, मान, माया एवं लोभ रूप चार कषायों, कृष्णादि चार लेश्याओं की भी लेखक ने विविध वैज्ञानिक उदाहरण देकर पुष्टि की है।
SR No.034365
Book TitleVigyan ke Aalok Me Jeev Ajeev Tattva Evam Dravya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherAnand Shah
Publication Year2016
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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