SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 288
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पुद्गल की विशिष्ट पर्याय 271 मणि की प्रभा हो अथवा बिजली की चमक, अपने केन्द्र के चारों ओर सतत प्रति सैकेण्ड 1,86,294 मील की गति से फैलता है। प्रकाश की यह गति सदैव एक-सी रहती है, इसीलिए वैज्ञानिकों ने आकाशीय पिण्डों की गति, दूरी आदि मापने में प्रकाश-गति को ही मानदंड माना है। कुछ समय पूर्व तक वैज्ञानिक प्रकाश को तरंगमय शक्ति ही मानते थे, पदार्थ नहीं। परंतु 'क्वांटम सिद्धांत' ने यह सिद्ध किया है कि प्रकाश न तो पूर्णतः सूक्ष्म कण-पुंज है, न पूर्णतः तरंग-पुंज, यह दोनों है। जब 'एक्स' किरण-पुंज विद्युत् कणों पर अलग-अलग रूप से आघात करता है, तब वह वर्षा की तीव्र बूंदों अथवा बंदूक की गोलियों की तरह आघात करता है; पर जब वही प्रकाश ठोस स्फटिक पर आघात करता है तब तरंग-पुंजों की तरह उस पर टकराता है। किंतु आधुनिकतम विज्ञान ने यह प्रमाणित कर दिया है कि कहीं पर प्रकाश सूक्ष्म कणों का रूप धारण करता है और कहीं तरंगों का। प्रकाश के सूक्ष्म कण तथा उसके सूक्ष्म तरंग पुंज मूलत: एक ही तत्त्व है। आधुनिक विज्ञान ने प्रकाश को न केवल पदार्थ ही, अपितु उसे भारवान भी स्वीकार कर लिया है। प्रकाश-विशेषज्ञ वैज्ञानिक का कथन है कि-"सूर्य के प्रकाश-विकिरण का एक निश्चित वजन होता है, जिसे आज के गणितज्ञों ने ठीक-ठीक नाप लिया है। प्रत्यक्ष में यह वजन बहुत कम होता है। पूरी एक शताब्दी में पृथ्वी के एक मील के घेरे पर सूर्य के प्रकाश का जो चाप पड़ता है, उसका वजन एक सैकेण्ड के पचासवें भाग में होने वाली मूसलाधार वर्षा के चाप के बराबर है। पर यह वजन इतना कम इसलिए लगता है कि विराट् विश्व में एक मील का क्षेत्र नगण्य से भी नगण्य है। यदि सूर्य के प्रकाश के पूरे चाप का वजन लिया जाय,
SR No.034365
Book TitleVigyan ke Aalok Me Jeev Ajeev Tattva Evam Dravya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherAnand Shah
Publication Year2016
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy