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________________ 268 जीव-अजीव तत्त्व एवं द्रव्य बैठी दिखाई पड़ती थी। सारा लंकाशायर नगर देखने को उमड़ पड़ा। तीन दिन तक दर्पण से यह स्त्री दिखाई दी, फिर दिखाई देना बंद हो गया। इटली में उसेला स्थान पर बना एक पुराना किला बड़े विचित्र रूपों में दिखाई देता है। सूर्योदय के समय यह किला पूरा दिखाई देता है और सूर्यास्त से कुछ पूर्व भी यह किला पूरे का पूरा दिखाई देता है लेकिन दोपहर में यह किला खण्डहर रूप में दिखाई पड़ता है। लेखक को मृग-मरीचिकाओं के दर्शन तो दिन में दोपहर के समय वर्ष में अनेक बार हो ही जाते हैं, परंतु एक बार केकड़ी नगर में कड़ाके की सर्दी पड़ रही थी, उसी समय प्रात:काल एक विचित्र मरीचिका क्षितिज पर दिखाई दी। चमकीला जल बाढ़ के समान उमड़ता नजर आया और कुछ मिनिटों में वह सारा दृश्य गायब हो गया। दर्पण पर पड़ने वाले प्रतिबिम्ब, पानी में पड़ने वाली परछाई आदि भी छाया के ही रूप हैं। ये सब पुद्गल के ही रूप या पर्यायें हैं। पुद्गल रूप होने से ही इनके फोटो (रूप चित्र) आ जाते हैं। यदि इनका अस्तित्व ही न होता तो फोटो आना कभी संभव न होता। प्रभा-उद्योत जैनदर्शन में प्रभा व उद्योत को पुद्गल की ही पर्याय कहा गया है। प्रभा व उद्योत को सामान्य भाषा में प्रकाश कहा जाता जा सकता है। प्रकाश जैनदर्शन में पदार्थ की ही एक अवस्था माना गया है। ___ वर्तमान में विज्ञान ने प्रकाश के विषय में बहुत अनुसंधान व प्रयोग किये हैं। उनमें सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण खोज व प्रयोग है लेसर किरण का। लेसर रश्मियाँ प्रकाश का घनीभूत रूप है। लेसर-रश्मियों की शक्ति के
SR No.034365
Book TitleVigyan ke Aalok Me Jeev Ajeev Tattva Evam Dravya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherAnand Shah
Publication Year2016
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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