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________________ पुद्गल की विशिष्ट पर्याय 265 हैं जो विपर्यस्त (Inverted) हो जाते हैं और जिनका परिमाण (size) बदल जाता है। ये प्रतिबिंब प्रकाश-रश्मियों के वास्तविक (Actually) मिलन से बनते हैं और प्रकाश की ही पर्याय होने से स्पष्टत: पौद्गलिक हैं। प्रतिबिम्बात्मक छाया के अंतर्गत विज्ञान के अवास्तविक प्रतिबिम्ब (Virtual images) रखे जा सकते हैं, जिनमें केवल प्रतिबिम्ब ही रहता है। प्रकाश-रश्मियों के मिलने से ये प्रतिबिम्ब नहीं बनते।' जिस प्रकार ध्वनि विद्युत् तरंगों का रूप लेकर लोकांत तक पहुँचती है, उसी प्रकार प्रतिच्छाया भी विद्युत् तरंगों का रूप ले विश्वव्यापक बनती है और जिस प्रकार लाखों मील दूर से प्रसारित ध्वनि रेडियों द्वारा ग्रहण की जाकर सुनी जा सकती है, इसी प्रकार लाखों मील दूर से प्रसारित प्रतिच्छाया भी टेलीविजन से ग्रहण की जाकर पर्दे पर देखी जा सकती है। चन्द्रमा में उतरे हुए अंतरिक्ष यानों द्वारा वहाँ की धरती के दृश्यों के प्रसारित प्रतिबिम्ब पृथ्वीवासियों को पर्दे पर दिखाई देना इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। तात्पर्य यह है कि छाया या प्रतिच्छाया तरंग रूप होती है और तरंगें शक्ति या पदार्थ है, यह विज्ञान का सर्वमान्य सिद्धांत है। कैमरे के लेंस पर पड़ी हुई प्रतिच्छाया की प्लेट पर फोटो आ जाती है। इससे भी यह सिद्ध होता है कि प्रतिच्छाया पदार्थ है अन्यथा प्लेट या रील पर उसका प्रतिबिम्ब नहीं आ सकता। ध्वनि की विद्युत् तरंगों और प्रतिच्छाया की विद्युत् तरंगों में एक मौलिक भेद है और वह यह है कि ध्वनि की विद्युत् तरंगें सब दिशाओं में मुड़ती हुई भी फैलती हैं, जबकि प्रतिच्छाया की विद्युत् तरंगें विश्व के प्रत्येक स्थान पर ग्रहण की जाकर सुनी जा सकती हैं, परंतु पृथ्वी के 1. मुनि श्री हजारीमल स्मृति ग्रंथ, पृष्ठ 386
SR No.034365
Book TitleVigyan ke Aalok Me Jeev Ajeev Tattva Evam Dravya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherAnand Shah
Publication Year2016
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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