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________________ पुद्गल की विशिष्ट पर्यायें 259 महत्त्वपूर्ण सिद्धांत प्रतिपादित किये हैं। उनमें से कुछ का दिग्दर्शन यहाँ कराया जाता हैभाषा-पुद्गल __ जैनागमों में भाषा के पुद्गल दो प्रकार के कहे गये हैं-(1) चार स्पर्शी और (2) आठ स्पर्शी। यह भी बताया गया है कि आठ स्पर्शी पुद्गल वाली भाषा ही कानों से सुनी जाती है। चार स्पर्शी पुद्गल वाली भाषा कानों से नहीं सुनी जा सकती है। ऐसा लगता है कि रेडियो स्टेशनों से प्रसारित विद्युत् लहरों के रूप में विद्यमान जो भाषा (ध्वनि) है, वह चार स्पर्शी है। इसी कारण अभी हम जहाँ बैठे हैं वहाँ से परे रेडियो स्टेशनों से निकली हुई भाषा की सैकड़ों विद्युत् लहरें विद्यमान हैं, फिर भी हमें नहीं सुनाई देती है। वे सुनाई तब ही पड़ती हैं जब हमारा रेडियो यंत्र उन्हें ग्रहण कर उन्हें अष्टस्पर्शी (स्थूल) बना देता है। शब्द का वर्गीकरण शब्दों के वर्गीकरण को लें। जैनाचार्यों ने शब्दों को भाषात्मक और अभाषात्मक इन दो वर्गों में रखा है। आज के वैज्ञानिकों ने भी इसी प्रकार से शब्दों के वर्ग किये हैं, जिन्हें संगीत ध्वनि (Musical Sounds) और कोलाहल (Noise Sounds) नाम दिये हैं। शब्द की गति शब्द की गति के विषय में जैनाचार्यों का कथन कौतूहलजनकसा है, यथा-जीवेणं भंते! जाइं दव्वाइं भासत्ताए गहियाई णिसिरइ ताई किं भिण्णाई णिसिरइ अभिण्णाइं णिसिरइ? गोयमा! भिण्णाइ वि णिसिरइ, अभिण्णाइं वि णिसिरइ। जाइं भिण्णाइं णिसिरइ, ताइं अणंतगुण परिवुड्डीए णं परिवुड्डमाणाई लोयंत फुसंति। जाइं अभिण्णाई णिसिरइ ताइं असंखिज्जाओ ओगाहण वग्गणओ गंता भेयमावज्जति संखिज्जाइं जोयणाई गंता विद्धंसमागच्छंति। -पन्नवणा पद 11, सूत्र 398
SR No.034365
Book TitleVigyan ke Aalok Me Jeev Ajeev Tattva Evam Dravya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherAnand Shah
Publication Year2016
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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