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________________ 254 जीव-अजीव तत्त्व एवं द्रव्य जाता है और तरल पादर्थ को नली के खोखले मार्ग से बाहर खींच लिया जाता है। कान के अनेक रोगों में भी आजकल अति ध्वनि का उपयोग किया जाने लगा है तथा इससे अन्य कई रोगों का भी बिना कष्ट पहुँचाये सरलता-सहजता से इलाज होने लगा है। जब किसी मानवीय अंग का श्रवणोत्तर ध्वनि से उपचार करना होता है तो नंगे अंग को जल के भीतर रखा जाता है। फिर चमड़ी से आधा इंच दूर की सीमा में श्रवणोत्तर ध्वनि प्रेरक यंत्र के ध्वनिपट्ट को आगे-पीछे किया जाता है। उसमें से निकली हुई अति ध्वनि की तरंग माँस, चमड़ी या रक्त को पार करती हुई शरीर में दो इंच तक प्रवेश कर जाती है। इस प्रकार बिना किसी प्रकार की तकलीफ पहुँचाये यह रोग को दूर कर देती है। ____ छाया चित्रांकन में उपयोग-ध्वनि कैमरा में ध्वनि का चित्रांकन किया जाता है। उसका उपयोग अपराधियों को पकड़ने के लिए किया जाता है। अंगुलियों की छाप की तरह ध्वनि-छाप भी प्रत्येक व्यक्ति को भिन्न एवं विशिष्ट होती है और अब यह भी मान लिया गया है कि वह अपरिवर्तनीय भी होती है। अतः जिस प्रकार अंगुलियों की छाप का अपराधियों के पकड़ने में उपयोग होता है उसी प्रकार ध्वनि छाप का उपयोग भी अपराधियों के पकड़ने में किया जा सकता है। ध्वनि-चिह्न वस्तुत: वाणी के चिह्न हैं जिन्हें कागजों में अंकित किया जा सकता है। ध्वनि-कैमरे द्वारा जिसे 'साउण्ड स्पेक्ट्रो ग्राफ' कहा जाता है प्रत्येक ध्वनि का विश्लेषण किया जा सकता है व उसकी आवृत्ति
SR No.034365
Book TitleVigyan ke Aalok Me Jeev Ajeev Tattva Evam Dravya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherAnand Shah
Publication Year2016
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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