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________________ 236 जीव-अजीव तत्त्व एवं द्रव्य गुण है। एक गंध वाहक यंत्र (Teleolfactory Call) का आविष्कार हुआ है जो गंध को लक्षित भी करता है तथा प्रेषित भी। यह यंत्र मनुष्य की नासिका की अपेक्षा बहुत संवेदनशील होता है तथा सौ गज दूरस्थ अग्नि को लक्षित करता है। इसकी सहायता से फूलों आदि की गंध, तार द्वारा या बिना तार के ही किसी स्थान से 65 मील दूर दूसरे स्थान प्रेषित की जा सकती है। स्वयं चालित अग्निशामक (Automatic Fire Control) भी इससे चालित होता है। इससे स्पष्ट है कि अग्नि आदि जिन पदार्थोंपुद्गलों की गंध हमारी नासिका द्वारा लक्षित नहीं होती है, उनकी गंध भी अधिक शक्ति सम्पन्न यंत्रों से लक्षित हो सकती है। इससे यह सिद्ध होता है कि पुद्गल भाग गंध युक्त है। रस गुण के पाँच प्रकार __ प्रत्येक पुद्गल या परमाणु को वर्ण और गंध गुण के समान रस गुण युक्त भी माना गया है। जैनागम में रस के पाँच भेद कहे गये हैं, यथा रसओ परिणया जे उ, पंचहा ते पकित्तिया। तित्तकडुयकसाया, अम्बिला महुरा तहा।। -उत्तराध्ययन सूत्र, अध्ययन 36, गाथा 19 अर्थात् पुद्गल का रस-परिणमन पाँच प्रकार का होता है, यथातीक्ष्ण, कटु, कसैला, खट्टा और मीठा। इन रसों का संबंध जिह्वा इन्द्रिय द्वारा ग्राह्य स्वाद से है। __स्वाद-ग्रहण की प्रक्रिया-जिह्वा में स्वाद-ग्रहण की एक विशिष्ट आंतरिक प्रक्रिया है। यह प्रक्रिया रासायनिक संवेद्यता कहलाती है। जीभ पर अगणित सूक्ष्म कोषों का एक जाल-सा फैला रहता है जो उभार से दिखाई पड़ता है। इन उभारों की डाल पर स्वाद-कलिकाएँ होती हैं। प्रत्येक
SR No.034365
Book TitleVigyan ke Aalok Me Jeev Ajeev Tattva Evam Dravya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherAnand Shah
Publication Year2016
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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