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पुद्गल द्रव्य
229 पीला और नील मूलत: ये तीन वर्ण मानता है, वह श्वेत वर्ण को सब वर्गों के मिश्रण रूप में व कृष्ण वर्ण को वर्णों के अभाव रूप में मानता है। जैनदर्शन लाल, पीले, नीले इन तीनों वर्गों के साथ श्वेत व कृष्ण को भी मूल वर्ण मानता है। जैनदर्शन के पंच वर्णात्मक सिद्धांत की पुष्टि निम्नांकित वैज्ञानिक प्रयोग से होती है
जब किसी भी पदार्थ को गर्म किया जाता है कि उसका तापमान बढ़ता जाता है तो सबसे पहले यह वस्तु ताप विकिरण करती है तो 500° सेंटिग्रेट तक इसका रूप नहीं होता है इसलिए काला ही रहता है, फिर रूप में परिवर्तन होकर 700° सेंटिग्रेट पर लाल, 1200° सेंटिग्रेट पर पीला
और 1500° सेंटिग्रेट पर श्वेत होता है। तापमान इससे अधिक किया जावे तो अंत में नीला रंग प्राप्त होता है। तात्पर्य यह है कि ये पाँच वर्ण ऐसे प्राकृतिक वर्ण हैं जो किसी भी पुद्गल से विभिन्न तापमानों पर उद्भूत हो सकते हैं। इसलिए इन्हें पुद्गल के मूल गुण मानना पड़ेगा। इससे यह सिद्ध होता है कि प्राकृतिक रूप में तो वे ही पाँच वर्ण या रंग हैं जो जैनागमों में वर्णित हैं।
जैनाचार्यों का वर्ण से तात्पर्य पुद्गल के उस मूलभूत गुण (Fundamental Property) से है जिसका प्रभाव आँख की पुतली पर लक्षित होता है और मस्तिष्क में रक्त, पीत, श्वेत आदि का आभास कराता है।
ऑप्टिकल सोसायटी ऑफ अमेरिका (optical Society of America) ने वर्ण का वर्णन इस प्रकार किया है-Colour is a General term for all sensations, arising from the activity of retina and its attached nervous mechanisms. It may be examplified by the enumeration of Characteristic instances such as red, yellow, blue, black and white. -Prof. G.R. Jain : Cosmology old and new