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________________ पुद्गल द्रव्य 217 परमाणु दुविहे पण्णते, तं जहा-सुहुमे य ववहारिए य। अणंताणं सुहूमपरमाणुपोग्गलाणं समुदय समिइ समागमेणं ववहारिए परमाणु पोग्गले निफ्फज्जइ। -अनुयोग, प्रमाण द्वार अर्थात् परमाणु दो प्रकार के होते हैं-सूक्ष्म परमाणु और व्यावहारिक परमाणु। सूक्ष्म परमाणु की परिभाषा ऊपर कही गयी है। व्यावहारिक परमाणु अनन्त सूक्ष्म परमाणुओं के समुदाय से बनता है। व्यावहारिक परमाणु स्वयं परमाणुओं के समवाय या समुदाय का पिण्ड है अत: आदि, मध्य और अंत वाला है, तथा जो आदि, मध्य और अंत वाला है उसका विभाजन भी संभव है फिर भी इसे परमाणु कहा है इसका कारण यह है कि उसमें सूक्ष्म परमाणु की परिभाषा सामान्य दृष्टि से घटित होती है। अर्थात् वह सामान्य यंत्रों से न तो छेदा जा सकता है, न विभाजित ही किया जा सकता है और न साधारण दृष्टि से ग्राह्य ही है। अत: व्यवहारत: इसे परमाणु कहा गया है। जैनदर्शन में वर्णित इस व्यावहारिक परमाणु और विज्ञान से प्रतिपादित परमाणु में समानता है, अत: विज्ञान के परमाणु की तुलना व्यावहारिक परमाणु से ही जा सकती है। आशय यह है कि सहस्रों वर्ष पूर्व जैनदर्शन में परमाणु विषयक जो स्वरूप व मान्यताएँ प्रतिपादित हैं, विज्ञान ने अपने क्रमिक विकास में एक-एक करके उन सबका समर्थन कर दिया है। पुद्गल शक्ति जैनदर्शन में शब्द, आतप, उद्योत आदि को भी पुद्गल का ही रूप माना गया है। परंतु विज्ञान जगत् में इन्हें शक्ति रूप में स्वीकार किया गया था तथा शक्ति तत्त्व या पदार्थ नहीं माना गया था। तत्त्व और शक्ति
SR No.034365
Book TitleVigyan ke Aalok Me Jeev Ajeev Tattva Evam Dravya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherAnand Shah
Publication Year2016
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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