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जीव-अजीव तत्त्व एवं द्रव्य ग्रन्थ 'विज्ञान की सीमाएँ' में कहते हैं कि-"विज्ञान सत्ता के एक आंशिक पक्ष का ही विवेचन करता है और यह मानने का रंच भी कारण नहीं है कि प्रत्येक वस्तु जिसकी विज्ञान अवज्ञा करता है, उस वस्तु से अल्पतर सत्य है जिसे विज्ञान स्वीकार करता है।"
प्रसिद्ध वैज्ञानिक सर जेम्स जीन्स ने अपने 'भौतिक शास्त्र और दर्शन-शास्त्र' ग्रन्थ में कहा है कि-"भौतिक विज्ञान जिस विश्व को जानता है वह अधिक-से-अधिक विद्यमान विश्व का एक अंश हो सकता है।"
श्री जे. बी. एस. हेल्डन का कथन है कि-"सत्य तो यह है कि जगत् का मौलिक रूप जड़ (Matter), बल (Force) अथवा भौतिक पदार्थ न होकर मन और चेतना ही है।"
विज्ञानवेत्ता श्री ओलिवर लॉज (Sir Oliver Lodge) लिखते हैं fon-"The time will assuredly come when these avenues into unknown region will be explored by science. The Universe is a more spiritual entity then we thought the real fact is that we are in the midst of spiritual world which dominates the material." अर्थात् एक दिन वह समय अवश्य ही आएगा जबकि विज्ञान द्वारा अज्ञात विषय का अन्वेषण होगा और हमें ज्ञात होगा कि जितना हम समझते और मानते थे, उससे भी अधिक विश्व का आध्यात्मिक अस्तित्व है। सच तो यह है कि हम ऐसे आध्यात्मिक जगत् के मध्य रह रहे हैं जो वास्तव में भौतिक जगत् से अधिक महान् और सशक्त है।
श्री ए. एस. एडिगटन वैज्ञानिक का कथन है-"Some thing is unknown in doing. We do not know what it is. I regard consciousness as derivative from consciousness. The Old Atheism is gone. Religion belongs to realm of spirit and mind, and can not be shaken."2
1. भारती 21 मार्च, 1965 2. The Modern Review, July 1936