SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 209
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 192 जीव-अजीव तत्त्व एवं द्रव्य आशय यह है कि जैनदर्शन में काल जिन विशेषताओं या गुणों से युक्त द्रव्य माना गया है, आधुनिक विज्ञान भी उन्हें स्वीकार करता है। व्यावहारिक काल __ जैनाचार्यों ने काल के दो रूप माने हैं-वास्तविक काल और व्यावहारिक काल, यथा लोकाकाशप्रदेशस्था भिन्ना: कालाणवस्तु ये, भावनां परिवर्ताय, मुख्य: काल: स उच्यते। ज्योति: शास्त्रे यस्य मानमुच्यते समयादिकम्, स व्यावहारिक काल: कालवेदिभिरामत:।। -योगशास्त्र, आचार्य हेमचन्द्र कृत लोकाकाश के प्रदेशों में रहने वाले, एक-दूसरे से भिन्न जो काल के अणु हैं, वे मुख्यकाल कहलाते हैं और वे ही पदार्थों के परिवर्तन में निमित्त होते हैं। ज्योतिष-शास्त्र में जो समयादि का परिणाम है वह व्यावहारिक काल है, ऐसा कालद्रव्य के वेत्ताओं ने कहा है। श्री हेमचन्द्राचार्य के इस काव्य-कथन से स्पष्ट है कि पदार्थों के परिणमन, क्रिया आदि में सहायभूत द्रव्य वास्तविक काल द्रव्य है और इन्हीं परिणामों, क्रियाओं व घटनाओं के अंतराल का अंकन व मापन करना व्यावहारिक काल है। व्यावहारिक काल पदार्थ का वास्तविक रूप न होकर पर के द्वारा आरोपित होता है। अतः यह औपचारिक होता है. वास्तविक कालद्रव्य नहीं। वास्तविक काल द्रव्य के लक्षणों का विज्ञान की दृष्टि से विवेचन किया जा चुका है। अब व्यावहारिक या औपचारिक काल पर विचार किया
SR No.034365
Book TitleVigyan ke Aalok Me Jeev Ajeev Tattva Evam Dravya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherAnand Shah
Publication Year2016
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy