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________________ 166 जीव-अजीव तत्त्व एवं द्रव्य 'पीनियल आई' नामक ग्रन्थि का अस्तित्व मानव मस्तिष्क के पिछले भाग में है। ग्रंथि हमारे मस्तिष्क का अत्यंत सबल रेडियो तंत्र है जो दूसरों की आंतरिक ध्वनि, विचार और चित्र ग्रहण करती है। इसका विकास होने पर व्यक्ति दुनिया भर के लोगों के मन के भेद जान सकने में समर्थ हो जायेगा। मनुष्य-मनुष्य के बीच कोई दुराव न रह सकेगा। कोई किसी से कुछ छिपाकर नहीं रख सकेगा।"1 लेखक का यह भी कहना है कि यह शक्ति प्राचीन काल में विद्यमान थी, बाद में लुप्त हो गई तथा डॉ. कर्वे का कथन है-“पाँच इन्द्रियों के अतिरिक्त एक छठी इन्द्रिय भी है जो अगम्य है, जिसे हम अतीन्द्रिय भी कह सकते हैं। मनुष्य प्रयत्न करे तो इस छठी इन्द्रिय का विकास हो सकता है। इस इन्द्रिय या शक्ति के कारण हम दूसरों के मन की बात जान सकते हैं।" मन के विचार जानने के अतिरिक्त ऐसे लोग दूर घटी घटना की सूचना भी प्राप्त कर सकते हैं। कुछ वर्षों पूर्व ऐसी बातें करने वालों को लोग मूर्ख मानते थे लेकिन इधर सुप्रसिद्ध विज्ञानवेत्ताओं ने काफी शोध कार्य के पश्चात् इस तथ्य में विश्वास करना आरंभ कर दिया है। कुछ विद्वानों का विश्वास है कि प्राचीन काल में इस शक्ति का बहुत विकास हुआ था। इसी के समर्थन में एक अन्य वैज्ञानिक का मन्तव्य है-“अनदेखी और अनजानी चीजों के बारे में सही-सही बता देने की ताकत को ही अंग्रेजों में 'सिक्स्थसेंस' अर्थात् छठी सूझ कहते हैं। समय और दूरी की सीमा में ही नहीं बल्कि किसी दूसरे के मन और मस्तिष्क की अभेद्य सीमा के अंदर भी आप इस सूझ के जरिये आसानी से प्रवेश पा सकते हैं। क्या यह सच है? क्या सचमुच ही ऐसी ताकत किसी में हो सकती है? बात कुछ असंभव-सी दिखती है। पर है यह सत्य। इससे इंकार नहीं किया जा सकता है।" 1. नवनीत, अप्रैल, 1953 2. नवनीत, जुलाई , 1955 3. नवनीत, जुलाई, 1952, पृष्ठ 40
SR No.034365
Book TitleVigyan ke Aalok Me Jeev Ajeev Tattva Evam Dravya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherAnand Shah
Publication Year2016
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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