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________________ त्रसकाय 163 श्री वेरडुक का कथन है कि जैसा संकल्प होता है उसका वैसा ही आकार होता है और उसी के अनुसार उस आकृति का रंग भी होता है। आकाश में संकल्प द्वारा नाना रूप बनते हैं। इन रूपों की बाह्य रेखा की स्पष्ट-अस्पष्टता संकल्पों की तीव्रता के तारतम्य पर निर्भर है। रंग विचारों का अनुसरण करते हैं; यथा-प्रेम एवं भक्ति-युक्त विचार गुलाबी रंग, तर्क-वितर्क पीले रंग, स्वार्थ-परता हरे रंग तथा क्रोध लालमिश्रित काले रंग के आकारों को पैदा करते हैं। अच्छे विचारों के रंग बहुत सुंदर और प्रकाशमान होते हैं, उनसे रेडियम के समान ही सदैव तेज निकला करता है। (देखिये:-'संकल्पसिद्धि-विचारों के रूप और रंग'।) __ जैन शास्त्रों में एक अन्य लेश्या का भी वर्णन मिलता है। उसे तेजोलेश्या कहा गया है। आगमों में इसकी प्राप्ति हेतु तपश्चर्या की एक विशेष विधि बतलाई गई है। तेजोलेश्या विद्युतीय शक्ति के समान गुणधर्म वाली होती है। इसके दो रूप हैं।-एक उष्ण तेजोलेश्या और दूसरी शीतल तेजोलेश्या। अणु या विद्युत् शक्ति के समान यह भी दो प्रकार से प्रयोग में लाई जाती है। इसका एक प्रयोग संहारात्मक है और दूसरा प्रयोग संरक्षणात्मक। प्रथम प्रयोग में प्रयोक्ता अपने मनोजगत् से उष्णता स्वभाव वाली उष्ण तेजोलेश्या की विद्युतीय शक्ति का प्रक्षेपण करता है जो विस्तार को प्राप्त हो अंग, बंग, मगध, मलय, मालव आदि सोलह देशों का संहार (भस्म) करने में समर्थ होती है। दूसरे प्रयोग में प्रयोक्ता शीतल स्वभाव वाली शीतल तेजोलेश्या की शक्ति का प्रयोग कर प्रक्षेपित उष्ण तेजोलेश्या के दाहक स्वभाव को शून्यवत् कर देता है। 1. भगवती-शतक 15 2. सोलसण्हं जणवयाणं तं जहा-अंगाणं, बंगाणं; मगहाणं, मलयाणं, मालवगाणं, अच्छाणं वच्छाणं, कोच्छाणं, पाढाणं, लाढाणं, वज्जाणं, मोलीणं, कासीणं, कोसलाणं, अवाहाणं, संभुतराणं घायाए, वहाए उच्छायणयाए भासीकरणयाए। -भगवती शतक 15
SR No.034365
Book TitleVigyan ke Aalok Me Jeev Ajeev Tattva Evam Dravya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherAnand Shah
Publication Year2016
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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