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________________ 148 जीव-अजीव तत्त्व एवं द्रव्य की जो विशेषताएँ जैनदर्शन में बतलायी गयी हैं, उन्हीं का यहाँ वर्णन किया जा रहा है। जैनदर्शन में क्रोध, मान, माया, लोभ, हास्य, भय, रति-अरति, शोक, जुगुप्सा, सुरक्षा आदि वृत्तियाँ-प्रवृत्तियाँ जिस प्रकार मनुष्यों में हैं, उसी प्रकार पशु, पक्षी, कीट-पतंगा आदि अन्य जीवों में भी मानी गई हैं। चींटी और मधुमक्खी की संग्रहवृत्ति, कबूतर की भोगवृत्ति, चीते की छलवृत्ति, कुत्ते की स्वामी भक्ति, भेड़ की सहनशक्ति, गौ की सरलवृत्ति, वानर की वात्सल्यवृत्ति, बया की कलाकृति आदि त्रस जीवों की उपर्युक्त सत्य वृत्तियों-प्रवृत्तियों से तो आप सब परिचित ही हैं। अत: उन्हें यहाँ पर दोहराना निरर्थक है। यहाँ केवल संकेत रूप में वनस्पति-विषयक उन्हीं बातों को प्रस्तुत किया जा रहा है, जिनके आधार पर मनुष्य अपने को वैज्ञानिक कहलाने में गौरव का अनुभव करता है। मनुष्य ने वैज्ञानिक आविष्कारों द्वारा वायुयान, मोटरकार, राडार, टेलीविजन आदि सुख-सुविधा व सुरक्षा संबंधी सैकड़ों वस्तुओं का निर्माण किया है और इनसे अपनी उन्नति व उत्कर्ष का गर्व करता है, परंतु पशु, पक्षी, कीट पतंगा आदि अन्य त्रस व स्थावर जीवों में भी ये सब बातें प्रकृति से ही विद्यमान हैं, उदाहरणार्थ प्रथम सुरक्षा को ही लें कंटक कवच-युद्ध क्षेत्र में सैनिक अपनी सुरक्षा के लिए काँटेदार तारों का उपयोग करते हैं। कीटाणुओं में कैटरपिलर और जानवरों में साही अपनी त्वचा पर लगे काँटों से अपनी रक्षा करते हैं। खरगोश की आकृति के इस पशु के शरीर में काँटे ही काँटे होते हैं। इन काँटों की लम्बाई चौदह इंच तक होती है। जिन्हें काँटे क्या तार ही कहना चाहिये। यह अपने शत्रु पर सामने से आक्रमण नहीं करती है। तेजी से उल्टे पाँव लौटकर अपने
SR No.034365
Book TitleVigyan ke Aalok Me Jeev Ajeev Tattva Evam Dravya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherAnand Shah
Publication Year2016
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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