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________________ 146 जीव- अजीव तत्त्व एवं द्रव्य है। अत: हमें स्वरक्षा के लिए वनस्पति के विनाश को रोकना होगा। हमारे लिए यह अनिवार्य हो गया है कि हम अपनी सम्पत्ति से भी अधिक वनस्पति को समझें, कारण कि भूमि, मुद्रा आदि तो निर्जीव धन है, वनस्पति तो सजीव धन है । सम्पत्ति के अभाव में तो हम जी सकते हैं पर वनस्पति के अभाव में नहीं । अतः वनस्पति अमूल्य है। जिस प्रकार हम निर्जीव सम्पत्ति के प्रति सजग होते हैं, उससे भी सैकड़ों गुना सतर्क सजीव सम्पत्ति के प्रति होते हैं, उससे भी सैकड़ों गुना सतर्क सजीव सम्पत्ति के प्रति होना होगा। जैसे धन आदि के अपव्यय से बचते हैं, उसे बचाते हैं, उससे भी कई गुना अधिक वनस्पति को बचाने के लिए प्रयत्न करना चाहिए। सतर्कता बरतनी होगी। यही मानव मात्र का प्रमुख कर्तव्य है, क्योंकि इसी पर ही हमारा अस्तित्व टिका है । इस दृष्टि से वनस्पति रक्षणीय है। 000
SR No.034365
Book TitleVigyan ke Aalok Me Jeev Ajeev Tattva Evam Dravya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherAnand Shah
Publication Year2016
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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