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________________ 144 जीव-अजीव तत्त्व एवं द्रव्य उपसंहार वर्तमान युग विज्ञान का युग है और प्रत्येक सिद्धांत की प्रामाणिकता विज्ञान के प्रकाश में निरखी-परखी जाती है। दर्शन भी इसका अपवाद नहीं है। आज वही दार्शनिक सिद्धांत जगत् में प्रतिष्ठा पाता है जो शास्त्रसम्मत तो हो ही, साथ ही विज्ञान सम्मत भी हो। इसमें कोई संदेह नहीं कि भगवान महावीर एवं आगमकारों ने जो वनस्पति का विवेचन किया है वह उनके वैज्ञानिक ज्ञान को स्पष्ट करता है। यही नहीं वे आज के वैज्ञानिकों की भाँति यन्त्रों पर आश्रित नहीं थे फिर भी सूक्ष्मतम जानकारी रखते थे। आगमों में निरूपित निगूढ़ सूत्रों की सत्यता शब्दश: विज्ञान से प्रमाणित होने के कारण सहज ही हृदय में भाव स्फुरित व स्फुटित होता है कि इन सूत्रों के प्रणेता निश्चय ही अतीन्द्रिय ज्ञानी थे, अन्यथा भौतिक प्रयोगशालाओं और यान्त्रिक साधनों से शून्य उस युग में वे इनका प्रणयन न कर पाते। वनस्पति विज्ञान के समान ही जैनागमों में निरूपित परमाणुवाद, कर्म-सिद्धांत आदि भी विज्ञान सम्मत तो हैं ही, साथ ही अत्यन्त कल्याणकारी भी हैं। शास्त्र-प्रणेताओं के इस ज्ञान-दान की महान् देन के आभार से मस्तक उनके चरणों में स्वतः झुक जाता है। यहाँ वनस्पति-विषयक जिन सूत्रों को विज्ञान सम्मत सिद्ध किया गया है उनमें से एक भी सूत्र विश्व के अन्य किसी दर्शन ग्रंथ में नहीं मिलता है तथा ये सूत्र विज्ञान के जन्म के पूर्व कपोल-कल्पित व असंभव समझे जाते थे। इन सूत्रों की रचना जैन आगमकारों ने भौतिक विज्ञान के जन्म से हजारों वर्ष पूर्व की थी। अतः यह कहा जाय तो अत्युक्ति या अतिशयोक्ति नहीं होगी कि वनस्पति विज्ञान के सूत्रों के मूल प्रणेता जैनागमकार ही थे।
SR No.034365
Book TitleVigyan ke Aalok Me Jeev Ajeev Tattva Evam Dravya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherAnand Shah
Publication Year2016
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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