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________________ 132 जीव-अजीव तत्त्व एवं द्रव्य जत्थ आभिणिबोहियनाणं तत्थ सुयनाणं जत्थ सुयनाणं तत्थ आभिणिबोहियनाणं, दोऽवि एयाइं अण्णमण्णमणुगयाई। -नन्दी सूत्र 24 __ अर्थात् जहाँ विज्ञानवेत्ता वनस्पति में सुख-दुःख का वेदन करने, अपना हिताहित सोचने, स्मृति से लाभ उठाने, सूझ-बूझ से काम लेने की शक्तियाँ मानते हैं। जैनदर्शन के अनुसार इन शक्तियों का अंतर्भाव मतिश्रुत ज्ञान में ही होता है। इस विषय में वनस्पति-वैज्ञानिकों के निम्नांकित उद्धरण व मन्तव्य पठनीय हैं श्री जगदीशचन्द्र बसु ने अपने प्रयोगों से यह सिद्ध कर दिया है कि पौधे त्वचा के सहारे अपने वे सब काम कर लेते हैं जो हम अपनी पाँचों ज्ञानेन्द्रियों से करते हैं। इतना ही नहीं, वे समय पर भोजन करते हैं, समय पर आराम करते हैं, समय पर सोते हैं और समय पर जागते हैं। हंगरी के प्रसिद्ध वैज्ञानिक राडल फ्रोचे ने वुडापेसस्ट के विख्यात पत्र ‘पेस्टर लाउड' में लिखा है कि पौधों में सोचने-समझने की शक्ति वर्तमान है। उनके कथनानुसार पौधों में दूरदर्शिता और बुद्धिमानी आश्चर्यजनक रीति से विकसित हुई है। कोई भी व्यक्ति ध्यान पूर्वक पौधों की जीवनचर्या का निरीक्षण करता जाये, तो उनकी बुद्धिमत्ता देखकर उसे चकित रह जाना पड़े। “बगीचों, कोठियों की दीवारों तथा जालियों से लिपटी हुई सेम, तोरई, मटर आदि की बेलें आप अक्सर देखते ही होंगे। इसे सिर्फ कहावत ही न समझें बल्कि सच्चाई है कि ये बेलें आपकी अंगुली पकड़ते कलाई भी पकड़ लेंगी। कुछ बेलें तो चंद मिनिटों में ही आपको नर्म-नर्म हथकड़ियाँ पहनाना शुरू कर देंगीं। विशेष बात है कि इनके लिपटने की वृत्ताकार गति सदैव ही घड़ी की तरह बायीं से दायीं दिशा को रहती है। 1. नवनीत, जुलाई 1957
SR No.034365
Book TitleVigyan ke Aalok Me Jeev Ajeev Tattva Evam Dravya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherAnand Shah
Publication Year2016
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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