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________________ 106 जीव-अजीव तत्त्व एवं द्रव्य रैन हैटट्रम्पट, नेपन्थीज, जोन्सलपोर्टिया, बीनसफ्लाई टैप, ड्रासरा, पिचर प्लान्ट आदि अन्य माँसाहारी पौधे भी कीड़ों का शिकार करने व उन्हें पकड़ने में बड़े निष्णात होते हैं। तात्पर्य यह है कि आज से ढाई हजार वर्ष पूर्व जिस काल में विश्व के अन्य दार्शनिक व विचारक वनस्पति को सजीव मानने में ही ननु-नच करते थे उस काल में जैनदर्शन ने वनस्पति को न केवल असंदिग्ध रूप से सजीव ही स्वीकार किया अपितु इस पर पचासों दृष्टियों से प्रकाश भी डाला। इनमें से एक दृष्टि आहार के प्रकार व पदार्थों पर भी डाली गई। इसमें वनस्पति द्वारा आहार-ग्रहण क्रिया, आहारपरिणमन-प्रक्रिया, निहार, ओजाहार-रोमाहार तथा वनस्पति के एकेन्द्रिय होने पर भी पंचेन्द्रिय जीवों तक का भोजन करना आदि के निरूपक सूत्र सर्वथा मौलिक व निराले ही थे। ये सूत्र विज्ञान के विकास के पूर्व विद्वानों को आश्चर्यजनक व कल्पनाप्रसूत लगते थे। परंतु आज ये ही सूत्र विज्ञान जगत् में प्रयोगों से परिपुष्ट व प्रत्यक्ष प्रमाणित होकर आगमप्रणेताओं के अतीन्द्रिय ज्ञानी होने की उद्घोषणा कर रहे हैं। ___ भय संज्ञा-भय दो रूपों में व्यक्त होता है-(1) आगत आपत्ति से भयभीत होना, डरना, काँपना, रोओं का खड़ा होना आदि । (2) आपत्ति से बचने के लिए सुरक्षा का प्रबंध करना। सुरक्षा की भावना का उद्गम स्थल भय ही है। वनस्पति में ‘भय' के दोनों ही रूप स्पष्ट अभिव्यक्त होते हैं। जिस प्रकार मनुष्य आपत्ति या प्रतिकूल परिस्थिति आते ही भयभीत हो जाता है और उसके निवारण या प्रतिरोध के लिए सुरक्षात्मक प्रयत्न करता है, उसी प्रकार वनस्पतियाँ भी आपत्ति आते ही भयभीत हो जाती हैं और
SR No.034365
Book TitleVigyan ke Aalok Me Jeev Ajeev Tattva Evam Dravya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherAnand Shah
Publication Year2016
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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