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________________ 102 जीव-अजीव तत्त्व एवं द्रव्य के कृषि विभाग ने इस पर विशेष प्रयोग किए हैं। नारियल का दूध गाजर के पौधों को दिया गया। फलस्वरूप वे कद में बीसों गुने अधिक बढ़ गये। अन्य पौधे भी औसत से अधिक ऊँचे हुए। जंगली चेस्टवर, अंग्रेजी अखरोट, मेवे आदि के दूधों के प्रयोगों का प्रभाव भी आश्चर्यजनक देखा गया है। इन दूधों से पौधों का विकास बड़ी शीघ्रता से होता है।" ___ सजीव प्राणियों का आहार सचित्ताहार कहा जाता है। इस विषय पर प्रकाश डालते हुए आगम में कहा है-"गोयमा! पुन्वभावपण्णवणं पडुच्च एवं चेव, पडुप्पण्णभावपण्णवणं पडुच्च णियमा एगिंदियसरीराइं पि आहारेंति। -पन्नवणा पद 28, उ. 1 __ भगवान का कथन है-गौतम! पृथ्वी, पानी आदि स्थावरकायिक जीव पूर्वभाव की अपेक्षा अर्थात् आहार रूप परिणत होने के पूर्व की अपेक्षा एकेन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय तक का आहार करते हैं और वर्तमान की अपेक्षा अर्थात् पुद्गलों के आहार रूप परिणत होने की अपेक्षा एकेन्द्रिय का आहार करते हैं। दूसरे शब्दों में स्थावरकाय वनस्पति एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय एवं पंचेन्द्रिय जीवों का आहार करती है। एकेन्द्रिय के पाँच भेद है-पृथ्वी, पानी, पावक (अग्नि), पवन (वायु), वनस्पति। वनस्पति अपनी जड़ों से सजीव पृथ्वी व पानी का, पत्तों, शाखाओं आदि से उष्मा व वायु का आहार लेती है। यही नहीं वनस्पति वनस्पति का भी आहार करती हैं। ऐसी वनस्पतियाँ परोपजीवी (Parasites) वनस्पतियाँ कहलाती हैं। ये दो प्रकार की होती हैं, पूर्ण-पराश्रयी व अर्ध-पराश्रयी। पूर्ण-पराश्रयी वनस्पति वह है जो अन्य पौधों पर उगती है और अपना पूरा का पूरा भोजन उन वनस्पतियों से ही ग्रहण करती है। 1. नवनीत, अप्रैल 1962, पृष्ठ 75
SR No.034365
Book TitleVigyan ke Aalok Me Jeev Ajeev Tattva Evam Dravya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherAnand Shah
Publication Year2016
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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