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________________ 96 जीव-अजीव तत्त्व एवं द्रव्य सोखते हैं और जाइलम नलियों द्वारा उसे पत्तियों की सतह तक पहुँचाते हैं। जहाँ वह वाष्प बनकर उड़ जाता है।'' तात्पर्य यह है कि आज जीवविज्ञान ने आगम-प्ररूपित इस सिद्धांत का पूर्ण समर्थन कर दिया है कि वनस्पति आहार करती है, उसे शरीर रूप में परिणमित करती है तथा उसमें से शेष रहे वर्ण्य पदार्थ मल का विसर्जन या निहार करती है। वनस्पति किस ऋतु में अधिक और किस ऋतु में कम आहार करती है, आगम में इसका विवेचन इस प्रकार आया है वणस्सइकाइयाणं भंते! किं कालं सव्वप्पाहारगा वा, सव्वमाहारगा वा भवंति? गोयमा! पाउस-वरिसारत्तेसु णं एत्थ णं वणस्सइकाइया सव्वमाहारगा भवंति, तयाणंतरं च णं सरए, तयाणंतरं च णं हेमंते, तयाणंतरं च णं वसंते, तयाणंतरं च णं गिम्हे, गिम्हासु णं वणस्सइकाइया सव्वप्पाहारगा भवंति। -भगवती शतक 7, उद्देशक 3, सूत्र 1 हे भगवन्! वनस्पति किस समय अधिकतम आहार करती है और किस समय अल्पतम आहार करती है? भगवान फरमाते हैं-हे गौतम! पावस व वर्षा ऋतु में वनस्पतिकायिक जीव सबसे अधिक आहार करते हैं। तदनन्तर अनुक्रम से शरद, हेमंत, वसंत व ग्रीष्म ऋतु में अल्प से अल्पतर आहार करते हैं। आधुनिक वनस्पति विज्ञानवेत्ताओं का कथन है कि वर्षा ऋतु में जल की अधिकता से वनस्पति के खाद्य पदार्थों में घोल व विलयन अधिक होता है और जड़ों द्वारा आहार ग्रहण की अधिक मात्रा विलयन की सुलभता पर निर्भर करती है। अत: आहार के विलयन की अनुकूलता 1. प्रा. जीव विज्ञान
SR No.034365
Book TitleVigyan ke Aalok Me Jeev Ajeev Tattva Evam Dravya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Lodha
PublisherAnand Shah
Publication Year2016
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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