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वनस्पति में संवेदनशीलता सब रसों का, कठोर, कोमल, रुक्ष, स्निग्ध आदि सब स्पर्श वाले पदार्थों का आहार ग्रहण करते हैं। ग्रहण किए हुए आहार के पूर्व के पुद्गलों के वर्ण, गंध, रस, स्पर्श को नवीन वर्ण, गंध, रस, स्पर्श में परिणमन करते हैं तथा सब आत्म-प्रदेशों से आहार करते हैं।
आगमवर्णित उपर्युक्त तथ्य आज वनस्पति-विज्ञान-अनुसंधानशालाओं में किए गये प्रयोगों से प्रगट में आ गए हैं। प्रयोगों से यह ज्ञात हुआ है कि वनस्पति अपनी पत्तियों द्वारा हवा के साथ कार्बन-डाइ
ऑक्साइड का आहार ग्रहण करती है, उसे वह प्रकाश संश्लेषण (Photosyn-thesis) क्रिया द्वारा ग्लूकोज (शक्कर) में परिणत करती है। फिर ग्लूकोज का कुछ भाग स्टॉर्च में और कुछ भाग कार्बोहाइड्रेट में परिणत होता है तथा शेष भाग जड़ों द्वारा प्राप्त किए पदार्थों को अनेक तत्त्वों में बदल देता है। उनमें से कुछ हैं-ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, हाइड्रोजन, सल्फर, फासफोरस, केलशियम, पोटेशियम, मेगनेशियम, आयरन आदि। इनमें से ऑक्सीजन और हाइड्रोजन पानी के परिवर्तित रूप हैं, इसी प्रकार अन्य तत्त्व भी दूसरे पदार्थों के रूपान्तर हैं। तात्पर्य यह है कि वनस्पति में भोजन के विविध तत्त्वों में ग्रहण करने एवं उनका विश्लेषण करने की विलक्षण शक्ति है। इसी शक्ति से मिट्टी में सोडियम
और पोटेशियम सममात्रा में मिले होने पर भी जड़ें सोडियम की अपेक्षा पोटेशियम को अधिक मात्रा में लेती हैं। जड़ें फास्फोरिक एसिड जैसे कठोर पदार्थ को भी, जो जल में भी कठिनाई से घुलता है, भोजन में ग्रहण करती हैं। काले व लाल वर्ण का गोबर-मेंगनी खाद, पीले वर्ण का सल्फर, श्वेत वर्ण का सुपरफासफेट, हरे वर्ण का पत्तियों का खाद वनस्पति का आहार बनकर विविध वर्ण, गंध, रस, स्पर्श में परिणत होता है। पौधे इसी से पुष्ट तथा तुष्ट होते हैं।