________________
[63
चतुर्थ अध्ययन
अजयं भुंजमाणो य, पाण भूयाई हिंसइ।
बंधइ पावयं कम्मं, तं से होइ कडुयं फलं ।।5।। हिन्दी पद्यानुवाद
यत्न रहित खाने वाला, प्राणी की हिंसा करता है।
वह बन्ध पाप का करता है, इससे कड़वा फल मिलता है।। अन्वयार्थ-अजयं भुंजमाणो य = अयतना से भोजन करता हुआ। पाणभूयाइं हिंसइ = प्राणभूत की अर्थात् छोटे-बड़े जीवो की हिसा करता है। बधइ पावय कम्म = इससे पाप कर्म का बन्ध करता है। तं से होइ कडुयं फलं = जो उसके लिये कड़वा फलदायी होता है।
भावार्थ-खाना शरीर के लिये आवश्यक है। फिर भी उसमें मर्यादा का ध्यान रखना आवश्यक है भूख से अधिक खाना, तमोगुणी एवं सजीव वस्तु का भक्षण करना, इधर-उधर गिराते हुए भोजन करना, भोजन में जूठा डालना, स्वादिष्ट पदार्थ खाकर खुशियाँ मनाना, नीरस भोजन की निंदा करना अविधि है, अयतना है । अयतना से खाने वाला, छोटे-बड़े जीवों की हिंसा करता है। उससे पाप कर्म का बन्ध होता है जो समय पर कट फलदायी होता है।
अजयं भासमाणो य, पाणभूयाइं हिंसइ।
बंधइ पावयं कम्म, तं से होइ कडुयं फलं ।।6।। हिन्दी पद्यानुवाद
___ यत्न रहित भाषण करता, प्राणी की हिंसा करता है।
वह बन्ध पाप का करता है, इससे कड़वा फल मिलता है।। अन्वयार्थ-अजयं भासमाणो य = अयतना से बोलता हुआ। पाणभूयाई हिंसइ = प्राणभूत की अर्थात् छोटे-बड़े जीवों की हिंसा करता है। बंधइ पावयं कम्मं = इससे पाप कर्म का बन्ध करता है। तं से होइ कडुयं फलं = जो उसके लिए कटु फलदायी होता है।
भावार्थ-बोलना लाभकारी है, बोलकर धर्म और नीति का प्रचार किया जाता है, किन्तु अविधि से बोला जाय तो वह लाभ के बदले हानि और अमृत के बदले विष का काम कर जाता है । इसलिये शास्त्रकार कहते हैं कि अयतना से बोलना हिंसा का कारण है, क्रोध लोभादिवश होकर झूठ बोलना, कर्कश, कठोर
और मर्मभेदी बोलना, निन्दा या आक्षेपजनक बोलना अयतना है। अयतना से बोलने वाला त्रस-स्थावर जीवों की हिंसा करता है, हिंसा से पाप का बन्ध होता है, जो कटु फलदायी होता है।
कहं चरे कहं चिढे, कहमासे कहं सए। कहं भुंजंतो भासंतो, पावकम्मं न बंधइ ।।7।।