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अन्त में दोनों चूलिकाएँ भी भमण जीवन की ही विशेषताओं का विवेचन कर रही है। अत: समग्रता में कहें तो दशवैकालिक सून भमण जीवन के प्रासाद की नींव है। इसके स्वाध्याय से भमण तो अपने आचार के प्रति सजग एवं दृढ़ हो ही सकते हैं; किन्तु भावक भी अपना ज्ञानवर्धन कर स्वयं के आचरण को पावन बनाते हुए भमणाचार के पालन में भमण-भमणियों के सहयोगी बन सकते हैं। आचार प्रधान आगम दशवैकालिक सूत्र पाठकों के समक्ष रसास्वादन हेतु प्रस्तुत है।
प्रस्तुत पुस्तक की पूर्ण सामग्री आचार्य भगवन्त भी हस्तीमलजी म.सा. की दीर्घ दृष्टि एवं गहरे आगम ज्ञान से अवलोकन की हुई है। गाथा व सूनों का हिन्दी पद्यानुवाद पं. श्री शशिकान्तजी ज्ञा द्वारा तैयार किया हुआ है। प्रफू संशोधन कार्य भी निलोकचन्दजी जैन ने किया। साथ ही कम्प्यूटर सेटिंग भी प्रहलाद नारायणजी लखेरा, आवरण पृष्ठ भी अनिल कुमारजी जैन द्वारा तैयार किया गया है, अत: मण्डल उक्त सभी विशेषज्ञों का आभारी है।
उस वर्ष अखिल भारतीय श्री जैन रत्न भाविका मण्डल, द्वारा आयोजित देशवैकालिक सून पर आधारित 'बनें आगम अध्येता' परीक्षा योजना के कारण इस पुस्तक की अत्यधिक माँग रही। मण्डल द्वारा अब यह अष्टम संस्करण प्रबुद्ध पाठकों के समक्ष प्रस्तुत है।
इस संस्करण की विशेषता है कि इस संस्करण में पुस्तक की साइज बड़ी करके अक्षरों को भी बड़ा किया गया है। जिससे सभी तरह के पाठक इसका स्वाध्याय सरलता से कर सकें।
आशा है, यह आगम ग्रन्थ स्वाध्यायियों एवं आगम रसिक जिज्ञासुओं के लिए विशेष उपयोगी सिद्ध होगा।
कैलाशमल दुगड़
अध्यक्ष
:: निवेदक :: सम्पतराज चौधरी
कार्याध्यक्ष सम्यग्ज्ञान प्रचारक मण्डल
विनयचन्द डागा
मन्त्री