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अध्ययन धर्म प्रज्ञप्ति रूप है, प्रभु ने कथन किया जिसका । है श्रेयस्कर मेरे हित में, दे मनोयोग पढ़ना उसका ।।
[दशवैकालिक सूत्र
अन्वयार्थ - सा = वह । छज्जीवणिया = षड्जीव निकाय । नामज्झयणं = नाम का अध्ययन | कयरा = कौनसा है, जो । खलु = निश्चय से ही। समणेणं = श्रमण | भगवया = भगवान । महावीरेणं कासवेणं = काश्यप गोत्री महावीर द्वारा । पवेइया = अच्छी तरह जाना गया है। सुअक्खाया = अच्छी तरह कहा गया है । सुपण्णत्ता = सुप्रज्ञप्त है। धम्मपण्णत्ती अज्झयणं = वह धर्म प्रज्ञप्ति अध्ययन । अहिज्जिउं = पढ़ना । मे = मेरे लिये । सेयं = श्रेयस्कर है।
भावार्थ- - गुरु द्वारा धर्मप्रज्ञप्ति अध्ययन का परिचय सुनकर शिष्य, जिज्ञासा करता है कि गुरुदेव ! वह धर्मप्रज्ञप्ति अध्ययन कौन सा है, जिसको श्रमण भगवान महावीर ने अच्छी तरह जाना, कथन किया और समझाया है । जिसका अध्ययन मेरे लिये हितकारी है। गुरु-शिष्य के प्रश्नोत्तर में शब्दों की पुनरावृत्ति दोष रूप नहीं मानी जाती । अत: पाठ में आये हुए शब्दों की पुनरुक्ति देखकर शंका नहीं करनी चाहिए ।
इमा खलु सा छज्जीवणिया नामज्झयणं समणेणं भगवया महावीरेणं कासवेणं पवेड्या - सुअक्खाया, सुपण्णत्ता, सेयं मे अहिज्जिउं अज्झयणं धम्मपण्णत्ती तं जहापुढवीकाइया, आउकाइया, तेउकाड्या, वाउकाड्या, वणस्सइकाइया, तसकाइया ।।3।। हिन्दी पद्यानुवाद
निश्चय षट्जीव निकायरूप, यह वर्णन सुखद मनोरम है। उस श्रमणवीर प्रभु काश्यप ने कहा जिसे अति उत्तम है । जिसको सम्यक् है बतलाया, एवं आख्यान किया जिसका । अध्ययन धर्म प्रज्ञप्ति सदा, क्षेमंकर है जन जीवन का ।। पृथ्वीकायिक, जलकायिक, तेजस्कायिक भी जीव यहाँ । है वायु वनस्पतिकायिक फिर, त्रसकायिक ऐसे भेद जहाँ ।।
अन्वयार्थ -इमा खलु सा..... धम्म पण्णत्ती = इसका अर्थ पूर्ववत् । तं जहा = वह धर्म प्रज्ञप्ति अध्ययन इस प्रकार है । पुढवीकाइया = पृथ्वीकायिक जीव । आउकाड्या = अप्कायिक जीव । तेउकाइया = अग्निकायिक जीव । वाउकाइया = वायुकायिक जीव । वणस्सइकाइया = वनस्पति कायिक जीव । तसकाइया = त्रसकायिक जीव । इस तरह जीव छः प्रकार के हैं।
भावार्थ-संयमी जीवन का लक्ष्य, जीव मात्र की रक्षा करना है । संक्षेप में संसार के सारे जीव 6 विभागों में विभक्त किये जा सकते हैं। जैसे- पृथ्वी - कायिक, अप्कायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक और त्रसकायिक ।