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नौवाँ अध्ययन] हिन्दी पद्यानुवाद
अविनीत अश्व गज ज्यों जग में, केवल दुःख भार उठाते हैं।
प्रत्यक्ष बात वैसे ही ये, अविनीत श्रमण दु:ख पाते हैं ।। अन्वयार्थ-तहेव = उसी तरह यानी दिव्य लक्ष्मी को घर से बाहिर निकालने के समान । उववज्झा = सवारी में काम आने वाले। अविणीअप्पा = अविनीत स्वभाव के। हया गया = हाथी, घोड़े। आभिओगं = भार ढोने में । उवट्ठिया = लगाये जाने पर । दुहमेहंता = दु:ख भोगते हुए । दीसंति = देखे जाते हैं।
भावार्थ-अविनीत को कैसे दुःख भोगने पड़ते हैं इसको दृष्टान्त के द्वारा बताते हैं-विनय की शिक्षा लेने के लिये कहे जाने पर भी कुपित होने वाले अज्ञ मानव के समान राजाओं की सवारी में काम आने वाले हाथी-घोड़े जो अविनीत स्वभाव के होते हैं, उनको भार ढोने के काम में लगा देते हैं, जहाँ वे दुःख भोगते हुए देखे जाते हैं। उनको बराबर चारा-पानी भी नहीं मिलता। अन्य प्रकार के आराम की तो बात ही कहाँ ?
तहेव सुविणीअप्पा, उववज्झा हया गया।
दीसंति सुहमेहंता, इढिं पत्ता महायसा ।।6।। हिन्दी पद्यानुवाद
जैसे विनम्र हाथी-घोड़े, भोजन भूषण सुख पाते हैं।
वैसे ही वे नम्र शिष्य, यश ऋद्धि और सुख पाते हैं ।। अन्वयार्थ-तहेव = वैसे ही। उववज्झा = सवारी में लगे हुए। हया गया = जो हाथी-घोड़े। सुविणीअप्पा = विनीत-स्वभाव वाले यानी अपने स्वामी के संकेत मात्र पर चलने वाले होते हैं। इद्धिं पत्ता = वे नाना प्रकार के आभूषण आदि की ऋद्धि प्राप्त करते हैं। महायसा = महा यशस्वी होते हैं, सबकी प्रशंसा प्राप्त करते हैं। सुहमेसंता = सुख भोगते हुए । दीसंति = देखे जाते हैं।
भावार्थ-वैसे ही जो हाथी-घोड़े सुविनीत होते हैं, संकेत मात्र से कदम बढ़ाते हैं, वे यशस्वी होते हुए, आभूषण आदि की ऋद्धि प्राप्त कर सुख एवं सम्मान भोगते ही देखे जाते हैं। अच्छे हाथी-घोड़ों की आज भी सेवकों द्वारा मालिश की जाती है और उनको यथेष्ट पौष्टिक भोजन दिया जाता है।
तहेव अविणीअप्पा, लोगंसि नर-नारिओ।
दीसंति दुहमेहंता, छाया ते विगलिंदिया ।।7।। हिन्दी पद्यानुवाद
कितने अविनीत पुरुष नारी, क्षत तन या विकलेन्द्रिय बनकर । दुःख पाते देखे जाते हैं, वैसे अविनीत साधु भूतल पर ।।