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द्वितीय अध्ययन]
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भावार्थ-उस राजीमती सती के इन हृदयस्पर्शी, सुभाषित वचनों को सुनकर रथनेमि का मन अंकुश के द्वारा वश हुए मत्त हाथी के समान संयम-धर्म में पुनः स्थिर हो गया।
हिन्दी पद्यानुवाद
एवं करंति' संबुद्धा, पंडिया पवियक्खणा । विणियति भोगेसु, जहा से पुरिसुत्तमो ।।11। -त्ति बेमि ।।
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अन्वयार्थ-संबुद्धा पंडिया = सम्यक् बोध वाले पंडित । पवियक्खणा = विचक्षण साधक । एवं इसी प्रकार । करंति = अपनी आत्मा को स्थिर करते हैं । भोगेसु = काम भोगों से । विि निवृत्त होते हैं । जहा = जैसे । से = वह । पुरिसुत्तमो = पुरुषोत्तम रथनेमि । त्ति बेमि = ऐसा मैं कहता हूँ ।
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ऐसा ही करते हैं विबुध प्रवर, पंडित और विचक्षण जन । भोगों से मन को हटा लेते, रथनेमि हुए ज्यों सुस्थिर मन ।।
भावार्थ- सम्यक् बोध वाले विलक्षण पुरुष वे हैं, जो मोहभाव के उदय से चंचल बनी चित्तवृत्तियों को ज्ञानांकुश से स्थिर कर लेते हैं, जैसे पुरुषोत्तम रथनेमि ने राजीमती के उद्बुद्ध वचन सुनकर भोगों से पुन: अपने मन को मोड़ लिया था ।
त्ति बेमि = (इति ब्रवीमि) ऐसा मैं कहता हूँ ।
करेंति पाठान्तर ।
॥ द्वितीय अध्ययन समाप्त ॥
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