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________________ आठवाँ अध्ययन] [209 हिन्दी पद्यानुवाद अंगार अग्नि या अर्चि तथा, अधजला दारु जो अग्नि सहित । ना दीप्त और संस्पर्श करे, या उन्हें बनाये अग्नि रहित ।। अन्वयार्थ-इंगालं = अंगार-जलते कोयले । अगणिं = अग्नि । अच्चिं = अग्नि की ज्वाला। वा = अथवा । सजोइयं = अग्नि सहित । अलायं = तृण या लकड़ी के अग्रभाग पर जलती आग को । न उंजिज्जा (उंजेज्जा) = प्रदीप्त करे नहीं। न घट्टिज्जा (घट्टेज्जा) = घर्षण करे नहीं। मुणी णं = मुनि, उस अग्नि को । नो निव्वावए = बुझावे भी नहीं। भावार्थ-मुनि अग्निकाय की रक्षा के लिये, जलते हुए कोयले की अग्नि, अग्नि की ज्वाला, अग्नि सहित लकड़ी को या तृणाग्रवर्ती आग को न प्रदीप्त करे, न घर्षण करे और न बुझावे । अग्नि का जलाना जैसे हिंसा जनक है, वैसे ही उसका बुझाना भी हिंसा का कारण है। भगवती सूत्र में अग्नि के जलाने में महा आरम्भ और बुझाने में अपेक्षाकृत अल्प आरम्भ बतलाया है। तालियंटेण पत्तेण, साहाए विहुयणेण वा। न वीइज्ज अप्पणो कायं, बाहिरं वा वि पुग्गलं ।।७।। हिन्दी पद्यानुवाद तालवृन्त या कमल पत्र से, शाखा के कम्पन से तन को। ना हवा करे अपने तन को, या किसी बाहरी पुद्गल को।। अन्वयार्थ-तालियंटेण = ताल पत्र के बीजणे से । पत्तेण = कदली केली आदि के पत्ते से । वा = अथवा । साहाए विहुयणेण = शाखा और पंखे से या शाखा को धुजा (हिला) करके । अप्पणो कायं = अपने शरीर को । वा = अथवा । बाहिरं = बाहर गर्म भोजन आदि । पुग्गलं (पोग्गलं) वि = किसी पुद्गल को भी। न वीइज्ज (वीएज्ज) = हवा करे नहीं। भावार्थ-तेजस्काय के समान वायुकाय की हिंसा से भी बचने के लिये कहा गया है कि साधु तालवृन्त, कदली-केले-केली आदि का पत्र, शाखा और पंखा चलाकर अपने शरीर, गर्म दूध, भोजन आदि बाह्य पदार्थ को हवा नहीं करे । इस प्रकार की हवा से वायुकाय के असंख्य जीवों के अतिरिक्त, सूक्ष्म त्रस की भी हिंसा होना सम्भव है। बिजली के पंखे से तो कई बार पक्षियों-चिड़ी, कबूतर आदि के मरने एवं आदमी के हाथ आदि कटने तक की घटनाएं हो चुकी हैं। अत: संयमी किसी प्रकार के पंखे से हवा नहीं करे। तण-रुक्खं न छिंदिज्जा, फलं मूलं व कस्सइ। आमगं विविहं बीयं, मणसा वि न पत्थए ।।10।।
SR No.034360
Book TitleDash Vaikalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages329
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size3 MB
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