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________________ सातवाँ अध्ययन] [ 181 अन्वयार्थ-अइयम्मि (अईयम्मि) = बीते हुए। कालम्मि = काल में । य = और। पच्चुप्पण्णं वर्तमान तथा । अणागए = भविष्य काल की । जमट्ठ = जिस वस्तु को अच्छी तरह। न = नहीं। |जाणिज्जा = जाने । तु = उस विषय में । ति = ऐसा ही है। एवमेयं = इस प्रकार । नो वए = निश्चयकारी भाषा नहीं बोले । = भावार्थ-साधु की भाषा बहुत महत्त्वपूर्ण और प्रामाणिक होती है । अत: उसको इतना ही बोलना चाहिये जो वस्तुत: यथार्थ हो । भूत, भविष्य अथवा वर्तमान काल के जिस पदार्थ को वह यथावत् नहीं जाने, उस सम्बन्ध में कोई निर्णायक बात नहीं कहे । इतना ही कहे कि ऐसा देखा, सुना या पढ़ा है, निश्चय में जैसा अतिशय ज्ञानी ने कहा है या कहेंगे, वही प्रमाण है । हिन्दी पद्यानुवाद अइयम्मि य कालम्मि, पच्चुप्पण्णमणागए । जत्थ संका भवे तंतु, एवमेयं ति नो वए ।।9।। भूत भविष्यत् वर्तमान में, हो संशय उत्पन्न कहीं । उसके लिये कभी भी पर को, निश्चय भाषा कहे नहीं ।। अन्वयार्थ-अइयम्मि (अईयम्मि) = बीते हुए। कालम्मि = काल में । य = और। पच्चुप्पणं = वर्तमान अथवा | अणागए = भविष्य काल में । जत्थ = जिस विषय में। संका = शंका । भवे = हो । तंतु = उस विषय में । ति = ऐसा ही है। एवमेयं = इस प्रकार । नो वए = नहीं बोले । हिन्दी पद्यानुवाद भावार्थ- - भूतकाल में जो हो चुका है एवं वर्तमान और भविष्यकाल में भी जिस वस्तु अथवा घटना के सम्बन्ध में शंका हो, उसके सम्बन्ध में यह ऐसा ही है, इस तरह अवधारिणी भाषा नहीं बोलनी चाहिये । भूतकाल के आचार्यों ने अपने ग्रन्थों में जो बात कही है, जब तक उस विषय में उनका दृष्टिकोण सही नहीं समझ लिया जाय तब तक निश्चयात्मक रूप से कुछ कहने से वह कथन मतभेद का कारण हो जाता है। इसलिये विवेकी पुरुषों को आग्रह पूर्ण भाषा का प्रयोग नहीं करना चाहिये । अइयम्मि य कालम्मि, पच्चुप्पण्णमणागए । निस्संकियं भवे जंतु, एवमेयं ति निद्दिसे ।।10।। भूत भविष्यत् वर्तमान में, हो यदि ज्ञान पूर्ण निश्चित । उसके बारे में ऐसा है, कहना मुनिजन को है समुचित ।।
SR No.034360
Book TitleDash Vaikalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages329
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size3 MB
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