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________________ 136] हिन्दी पद्यानुवाद पूजार्थी वा यशस्कामी, सम्मान मान का अति इच्छुक । पैदा करता है बहुत पाप, और माया शल्य धरे भिक्षुक ।। अन्वयार्थ- पूयणट्ठा = महिमा पूजा चाहने वाला । जसोकामी = यशस्कामी और । माणसम्माणकामए = मान सम्मान की इच्छा करने वाला। बहुं = बहुत। पावं = पापकर्म का । पसवई संचय करता है । च = और। मायासल्लं = माया शल्य का । कुव्वइ = सेवन करता है । हिन्दी पद्यानुवाद भावार्थ-महिमा के लिये कपट करने वाला वह साधु अधिक पाप कर्म का संचय करता है और माया रूपशल्य का सेवन करता है। (जो आत्मा के लिये अकल्याणकारी होता है) । सुरं वा मेरगं वा वि, अण्णं वा मज्जगं रसं । सक्खं पिवे भिक्खू, जसं सारक्खमप्पणो ।।36।। हिन्दी पद्यानुवाद सुरा और मैरेयक को या मद्यजनक वैसे रस को । ना पीए भिक्षु जिन साक्षी, कर संरक्षण निज संयम को ।। [दशवैकालिक सूत्र अन्वयार्थ - अप्पणो = अपने । जसं = निर्मल संयम का । सारक्खं = रक्षण करने वाला । भिक्खू = भिक्षु । सुरं = सुरा । वा = या । मेरगं = मेरक । वा वि = अथवा अण्णं = अन्य । मज्जगं = मादक | वा = या । रसं = रस । ससक्खं = अरिहन्त या आत्मा की साक्षी से । ण पिवे = नहीं पिये । = भावार्थ-वह भिक्षु अपने संयम-धर्म को निर्मल रखने के लिये सुरा आदि किसी भी प्रकार के मा द्रव्य का आत्म-साक्षी से कभी उपयोग नहीं करे। संगति के दोष से कोई गृहस्थ दशा में मादक द्रव्य लेने वाला रहा हो और फिर संयमी बन गया हो, वैसे भिक्षु को शिक्षा के लिये कहा गया है । पियए एगओ तेणो, ण मे कोई वियाणइ । तस्स पस्सह दोसाइं, णियडिं च सुणेह मे ।।37।। बन चोर अकेला वह पीता, समझे न मुझे कोई जाने । देखो उनके इन दोषों को, माया उसकी सुन लो छाने ।। अन्वयार्थ-तेणो = भगवान की आज्ञा का चोर । एगओ = एकाकी । पियए = पीता है, वह सोचता है कि । मे = मुझे । कोई = कोई । ण वियाणइ = नहीं जानता। तस्स = उस मायाचारी के । दोसाई
SR No.034360
Book TitleDash Vaikalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages329
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size3 MB
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