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________________ 120] [दशवैकालिक सूत्र हिन्दी पद्यानुवाद तीखा कड़वा और कषैला, मधुर अम्ल नमकीन तथा । साधु निमित्त दिया विधि से तो, मधु-घृत सम ले बिना व्यथा।। अन्वयार्थ-तित्तगं = आहार तीखा हो । व = अथवा । कडुयं व = कड़वा हो । कसायं = कषैला हो। अंबिलं = अथवा खट्टा । व = अथवा । महुरं = मीठा हो । वा= या । लवणं = नमकीन भोजन । अण्णट्ठपउत्तं = जो गृहस्थ के लिये बना हो । एयलद्धं = विधि से प्राप्त उस भोजन को । संजए = साधु । महुघयं व = मधु और घी की तरह । भुंजिज्ज = शान्त मन से सेवन कर ले-खा ले। भावार्थ-साधु तीखा, कड़वा, कषैला, खट्टा, मीठा या नमकीन किसी प्रकार का भोजन हो जो गृहस्थ के लिये बना और विधिपूर्वक प्राप्त हो उसको मधु और घृत की तरह शान्त भाव से खा ले। अरसं विरसं वा वि, सूइयं वा असूइयं । उल्लं वा जइ वा सुक्कं, मंथुकुम्मास-भोयणं ।।98।। हिन्दी पद्यानुवाद अरस विरस अथवा बघार से, युक्त अयुक्त बना वैसा। बेर चूर्ण बाकुला उड़द का, भोजन आर्द्र शुष्क जैसा ।। अन्वयार्थ-अरसं = (विधि से प्राप्त भोजन) अरस नीरस हो । वा वि = अथवा । विरसं = विरस पुराणा धान । सूइयं = बघार आदि से सुवासित । वा = अथवा । असूइयं = या संस्कारहीन । उल्लं = गीला । वा = अथवा । जइवा= चाहे । सुक्कं = सूखा । मंथु = बेर का चूर्ण । कुम्मास भोयणं = उड़द का भोजन हो। भावार्थ-केवल संयम-साधना के लिये जीने वाला मुनि जैसा भी आहार प्राप्त हो, रस रहित हो या नीरस, सुवासित हो अथवा संस्कार रहित, गीला हो, अथवा बेर का चूर्ण एवं उड़द के बाकुले आदि हो उप्पण्णं नाइहीलिज्जा, अप्पं वा बहुफासुयं । मुहालद्धं मुहाजीवी, भुंजिज्जा दोसवज्जियं ।।99।। हिन्दी पद्यानुवाद मिले धर्म मर्यादा से जो, प्रासुक भोजन अल्प अधिक। सहज प्राप्त निर्दोष वस्तु खाये, न लाये मन में शोक ।। अन्वयार्थ-उप्पण्णं = विधि से प्राप्त हुए। अप्पं वा = थोड़े या । बहु = बहुत रूखा सूखा ।
SR No.034360
Book TitleDash Vaikalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages329
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size3 MB
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