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________________ पाँचवाँ अध्ययन] [111 अन्वयार्थ-तहेव = उसी प्रकार आहार के समान । उच्चावयं = उच्च अर्थात् अच्छे वर्ण, गंध, रस आदि से श्रेष्ठ और अवच यानी अश्रेष्ठ । पाणं = पानक । अदुवा = अथवा । वारधोयणं = गुड़ के घड़े का धोवन । संसेइमं = आटे की परात का धोवन । चाउलोदगं = चावल का धोवन आदि । अहुणाधोयं = तत्काल का धोया हो तो । विवज्जए = वर्जन कर दे। भावार्थ-आहार की तरह पानी में भी द्राक्षा आदि का वर्ण, गंध, रस से श्रेष्ठ और केर, मेथी आदि का अवच अर्थात् वर्णादि में असुन्दर पानी अथवा गुड़ के घड़े का धोवन, आटे की परात का धोवन और चावल का धोवन यह सब तत्काल का धोया हुआ हो तो साधु उसे ग्रहण नहीं करे । इसमें फरसने की पूरी शंका रहती है। जं जाणिज्ज चिराधोयं, मईए दंसणेण वा । पडिपुच्छिऊण सुच्चा वा, जं च णिस्संकियं भवे ।।76।। हिन्दी पद्यानुवाद मति या दर्शन से मुनि जिसको, जाने चिर कालिक धोवन । सुनकर तथा पूछकर जो है, शंका रहित बना धोवन ।। अन्वयार्थ-जं = जो पानी । मईए = बुद्धि बल से । वा = या । दसणेण = देखने से । जाणेज्ज = जाने कि । चिराधोयं = यह बहुत काल का धोया हुआ है। च = और । जं = जो । पडिपुच्छिऊण = पूछकर । वा = अथवा । सुच्चा = सुनकर । निस्संकियं = शंका रहित । भवे = हो। भावार्थ-साधु अपनी बुद्धि या दर्शन से जिस जल को बहुत काल का धोया जान ले और जब पूछकर एवं सुनकर शंका रहित हो जावे कि अजीवं परिणयं णच्चा, पडिगाहिज्ज संजए। अह संकियं भविज्जा, आसाइत्ताण रोयए।।77।। हिन्दी पद्यानुवाद जीव रहित परिणत जल को, जानकर करे मुनि उसे ग्रहण। फिर भी शंकित हो तो चखकर, निर्णय पूर्वक करे ग्रहण ।। अन्वयार्थ-अजीवं = उस जल को निर्जीव रूप से । परिणयं = परिणत । णच्चा = जानकर । संजए = संयमी साधु । पडिगाहिज्ज = ग्रहण करे । अह = यदि । संकियं = शंका युक्त । भविज्जा = हो तो। आसाइत्ताण = आस्वादन करके । रोयए = जाने और तब निर्णय करे।
SR No.034360
Book TitleDash Vaikalika Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimalji Aacharya
PublisherSamyaggyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages329
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size3 MB
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