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[ अंतगडदसासूत्र
सोमा नामक कन्या को देखा, पासित्ता सोमाए दारियाए = देखकर सोमा लड़की के, रूवेण य जोव्वणेण य = रूप से और यौवन से, जाव विम्हिए = विस्मित हुए ( प्रभावित हुए) ।
भावार्थ-तब वह सोमा कन्या अन्यदा किसी दिन स्नान कर यावत् वस्त्रालंकारों से विभूषित हो, बहुत सी कुब्जा आदि दासियों के परिवार से घिरी हुई अपने घर से बाहर आई। घर से बाहर निकल कर जहाँ राजमार्ग है, वहाँ आई और राजमार्ग में सुवर्ण की गेंद से खेल खेलती-खेलती खेल में निमग्न हो गई।
उस काल उस समय अरिहन्त अरिष्टनेमि द्वारिका नगरी पधारे । परिषद् धर्म-कथा सुनने को आई । उस समय वह कृष्ण वासुदेव भी भगवान के शुभागमन के समाचार से अवगत हो, स्नान कर यावत् वस्त्रालंकारों से विभूषित होकर गजसुकुमाल कुमार के साथ हाथी के हौदे पर आरूढ़ होकर कोरंट पुष्पों की माला और छत्र धारण किये हुए, श्वेत एवं श्रेष्ठ चामरों से दोनों ओर से निरन्तर हवा किए जाते हुए, द्वारिका नगरी के मध्य भागों से होकर अर्हत् अरिष्टनेमि के चरण-वन्दन के लिये जाते हुए, राजमार्ग में खेलती हुई उस सोमा कन्या को देखते हैं। सोमा कन्या के रूप, लावण्य और कान्ति - युक्त यौवन को देखकर कृष्ण वासुदेव अत्यन्त आश्चर्यचकित हुए । सूत्र 17
मूल
संस्कृत छाया
तए णं से कण्हे वासुदेवे कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी-गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! सोमिलं माहणं जाइत्ता सोमं दारियं गिण्हह, गिण्हित्ता कण्णंतेउरंसि पक्खिवह ।
तए णं एसा गयसुकुमालस्स कुमारस्स भारिया भविस्सइ । तए णं ते कोडुंबिय पुरिसा जाव पक्खिवंति ।
तए णं ते कोडुंबिय पुरिसा जाव पच्चप्पिणंति । कण्हे वासुदेवे बारवईए नयरीए मज्झंमज्झेणं णिग्गच्छइ, णिग्गच्छित्ता जेणेव सहस्संबवणे उज्जाणे जाव पज्जुवासइ । तए णं अरहा अरिट्ठणेमी कण्हस्स वासुदेवस्स गय-सुकुमालस्स कुमारस्स तीसे य० धम्म कहा । कण्हे पडिगए ।
तत: खलु सः कृष्णः वासुदेव: कौटुम्बिक - पुरुषान् शब्दापयति, शब्दापयित्वा एवं अवदत्-गच्छत खलु यूयं देवानुप्रिया ! सोमिलं ब्राह्मणं याचित्वा सोमां दारिकां गृह्णीत, गृहीत्वा कन्यान्तःपुरे प्रक्षिपत । ततः खलु एषा गजसुकुमालस्य