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तृतीय वर्ग - सातवाँ अध्ययन ]
27} दायः विंशति वर्षाणि दीक्षापर्याय: चतुर्दशपूर्वाणि अधीयते, शत्रुञ्जये यावत्
सिद्धाः । षष्ठाध्ययनं समाप्तम्। अन्वयार्थ-जहा अणीयसेणे, एवं सेसावि- = जैसे अनीकसेन वैसे शेष दूसरे भी। जैसे, (अणंतसेणे अजियसेणे अणिहयरिऊ देवसेणे सत्तुसेणे = (अनन्तसेन, अजितसेन, अनिहतरिपु, देवसेन, शत्रुसेन) ये, छ अज्झयणा एगगमा-बत्तीसओ दाओ बीसं वासाइं परियाओ = छ अध्ययन एक समान हैं। (सबने) बत्तीस करोड़ का दहेज (लेकर) बीस वर्ष की दीक्षा पर्याय पालन कर, चोद्दस पुव्वाइं अहिज्जति = चौदह पूर्वो का अध्ययन किया एवं, सेत्तुंजे जाव सिद्धा छ?मज्झयणं समत्तं = शत्रुजय पर्वत पर यावत् सिद्ध हुए।
भावार्थ-जिस प्रकार अनीकसेन कुमार का वर्णन किया गया, उसी प्रकार शेष अध्ययन भी-2. अनन्तसेन, 3. अजितसेन, 4. अनिहतऋपु, 5. देवसेन और 6. शत्रुसेन-समझना । ये छ ही अध्ययन एक समान हैं। इन सबको भी बत्तीस-बत्तीस करोड़ चाँदी सोने का दहेज मिला। सबका 20/20 वर्ष का दीक्षा काल रहा । सबने चौदह पूर्व का अध्ययन किया एवं सभी शत्रुजय पर्वत पर यावत् सिद्ध हुए।
।। इइ 2-6 अज्झयणाणि-2-6 अध्ययन समाप्त ।।
। सत्तममज्झयण-सप्तम अध्ययन
मूल- जइ णं भंते ! उक्खेवो सत्तमस्स । तेणं कालेणं तेणं समएणं बारईए
नयरीए जहा पढमे, नवरं-वसुदेवे राया, धारिणी देवी, सीहो सुमिणे, सारणे कुमारे, पण्णासओ दाओ, चोइस पुव्वाई, वीसं वासाई
परियाओ, सेसं जहा गोयमस्स जाव सेत्तुंजे सिद्धे। संस्कृत छाया- यदि खलु भदन्त ! उत्क्षेपक: सप्तमस्य । तस्मिन् काले तस्मिन् समये द्वारावत्यां
नगर्यां यथा प्रथमे, विशेषेण वसुदेवो राजा, धारिणी देवी, सिंहः स्वप्ने, सारण: कुमारः, पंचाशत् दायः, चतुर्दश पूर्वाणि, विंशति वर्षाणि दीक्षापर्याय:, शेषः
यथा गौतमस्य यावत् शत्रुञ्जये सिद्धः । अन्वयार्थ-जइ णं भंते ! उक्खेवो सत्तमस्स = हे पूज्य ! सातवें का यह उत्क्षेपक है, तेणं कालेणं तेणं समएणं = उस काल उस समय में, बारईए नयरीए जहा पढमे = द्वारिका नगरी थी। जैसे प्रथम में, नवरं-वसुदेवे राया धारिणी देवी = विशेष-वसुदेव राजा, धारिणी रानी थी, सीहो सुमिणे,