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पढमो वग्गो-प्रथम वर्ग
सूत्र 1
मूल- तेणं कालेणं तेणं समएणं चम्पा नाम नयरी होत्था, वण्णओ। तत्थ
णं चम्पाए नयरीए उत्तरपुरस्थिमे दिसिभाए एत्थ णं पुण्णभद्दे नाम चेइए होत्था। वणखंडे वण्णओ। तीसे णं चम्पाए नयरीए कोणिए
नामं राया होत्था। महया हिमवंत, वण्णओ।।1।। संस्कृत छाया- तस्मिन् काले तस्मिन् समये चम्पा नाम नगरी अभवत्, वर्ण्यः । तत्र चम्पायां
नगर्यां उत्तरपौरस्त्ये दिग्भागे अत्र पूर्णभद्रं नाम चैत्यमभवत् । वनखण्ड: वर्ण्यः । तस्यां चम्पायां नगर्यां कोणिको नाम राजा अभवत् । महत्तया हिमवन्त:,
वर्णकः।।1।। अन्वायार्थ-तेणं कालेणं = उस काल, तेणं समएणं = उस समय, चम्पा नामं नयरी होत्था = चम्पा नाम की नगरी थी, वण्णओ = (जो) वर्णनीय थी। तत्थ णं चम्पाएउत्तरपुरत्थिमे दिसिभाए = वहाँ चम्पा नगरी में उत्तर पूर्व दिशा भाग में, एत्थ णं पुण्णभद्दे नामं चेइए होत्था = यहाँ पूर्णभद्र नाम का चैत्य था। वणखंडे वण्णओ = (यहाँ) वन खण्ड (भी) वर्णनीय था। तीसे णं चम्पाए नयरीए कोणिए नामं राया होत्था = उस चम्पा नगरी में कोणिक नाम का राजा था। महया हिमवंत, वण्णओ = (जो) महाहिमवान् पर्वत के समान वर्णनीय था ।।1।।
भावार्थ-उस काल उस समय अर्थात् इसी अवसर्पिणी काल के चतुर्थ आरक के अन्तिम समय में, जबकि भगवान महावीर विचर रहे थे, वर्णन करने योग्य नगरियों में आदर्श एवं प्रतीक स्वरूप चम्पा नाम की नगरी थी। उस चम्पानगरी के ईशानकोण में पूर्णभद्र नामक चैत्य था । वहाँ का वनखण्ड वर्णनीय अर्थात् मन को प्रफुल्लित कर देने वाला, नयनाभिराम और बड़ा रम्य था। उस चम्पा नगरी में कोणिक नामक राजा था,