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[अंतगडदसासूत्र भावार्थ-इस प्रकार तप में सात लताओं की एक परिपाटी हुई । इस तप में भी कुल परिपाटियाँ चार होती हैं। इसमें एक परिपाटी का काल आठ महीने और पाँच दिन हुए एवं इसी हिसाब से चारों का काल दो वर्ष आठ महीने और बीस दिन होते हैं। प्रथम परिपाटी के आठ मास और पाँच दिनों में, उनपचास दिन पारणे के और छ मास सोलह दिन तपस्या के होते हैं। इस प्रथम परिपाटी में पारणों में विगय का त्याग नहीं किया। दूसरी परिपाटी में पारणों में विगय का त्याग किया। तीसरी परिपाटी में पारणों में विगय के लेप मात्र का भी त्याग कर दिया । चौथी परिपाटी में पारणों में आयम्बिल किये।
___इन चारों परिपाटियों को पूर्ण करने में दो वर्ष आठ मास और बीस दिन का समय लगा। शेष आर्या वीरसेन कृष्णा ने सूत्रानुसार इस तप की साधना की और अन्त में कृश काय होने पर वे भी संलेखना-संथारा कर यावत् सिद्ध-बुद्ध और मुक्त हो गईं।।8।।
।। सत्तममज्झयणं-सप्तम अध्ययन समाप्त ।।
अट्ठममज्झयणं-अष्टम अध्ययन
सूत्र 1 मूल- एवं रामकण्हा वि। नवरं भद्दोतरं पडिमं उवसंपज्जित्ताणं विहरइ । तं
जहा दुवालसमं करेइ, करित्ता सव्वकामगुणियं पारेइ, पारित्ता चउद्दसमं करेइ, करित्ता सव्वकामगुणियं पारेइ, पारित्ता सोलसमं करेइ, करित्ता सव्वकामगुणियं पारेइ, पारित्ता अट्ठारसमं करेइ, करित्ता सव्वकामगुणियं पारेइ, पारित्ता बीसइमं करेइ, करित्ता सव्वकामगुणियं पारेइ,
पारित्ता पढमा लया।।1।। संस्कृत छाया- एवं रामकृष्णाऽपि । विशेष:-भद्रोत्तरप्रतिमाम् उपसंपद्य विहरति । तद्यथा-द्वादशं
करोति, कृत्वा सर्वकामगुणितं पारयति, पारयित्वा चतुर्दशं करोति, कृत्वा सर्वकामगुणितं पारयति, पारयित्वा षोडशं करोति, कृत्वा सर्वकामगुणितं पारयति, पारयित्वा अष्टादशं करोति, कृत्वा सर्वकामगुणितं पारयति, पारयित्वा विंशतितमं
करोति, कृत्वा सर्वकामगुणितं पारयति, पारयित्वा (एवं) प्रथमा लता।।1।। अन्वयार्थ-एवं रामकण्हा वि = इसी प्रकार आठवीं रामकृष्णा देवी का अध्ययन भी समझना चाहिए । नवरं भद्दोतरं पडिमं उवसंपज्जित्ताणं विहरइ = विशेष यह है कि वह रामकृष्णा देवी भद्रोत्तर