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[ अंतगडदासून चम्पा नामा नगरी पूर्णभद्रं चैत्यं कूणिको राजा (आसीत् । तत्र खलु श्रेणिकस्य राज्ञः भार्या कोणिकस्य राज्ञः क्षुल्लमाता सुकाली नामा देवी अभवत्। यथा काली तथा सुकाली अपि निष्क्रान्ता यावत् बहुभि: चतुर्थैः यावत् आत्मानं भावयन्ती विहरति । ततः खलु सा सुकाली आर्या अन्यदा कदाचित् यत्रैव आर्यचन्दना आर्या यावत् “इच्छामि खलु आर्या ! युष्माभिः अभ्यनुज्ञाता सती कनकावली तपः कर्म उपसंपद्य विहर्तुम्। एवं यथा रत्नावली (तपः कृतं) तथा कनकावली तप: अपि (विहितम्) विशेषस्तु (कनकावल्यां) त्रिषु स्थानेषु अष्टमानि करोति, यथा रत्नावल्यां षष्ठानि एकस्यां परिपाट्यां संवत्सरः पंचमासा: द्वादश च अहोरात्रा: चतुर्षु (परिपाटीसु) पंच वर्षाणि नवमासाः अष्टादश दिवसाः शेषं तथैव, नव वर्षाणि पर्यायः । यावत् सिद्धा ।। 2 ।।
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अन्वयार्थ - उक्खेवओ बीयरस अज्झयणस्स दूसरे अध्ययन का उत्क्षेपक है, एवं खलु जम्बू ! = इस प्रकार हे जम्बू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं उस काल उस समय में, चंपा नामं चम्पा नाम की, नयरी, पुण्णभद्दे चेइए = नगरी, पूर्णभद्र नामक उद्यान, कोणिए राया = और कोणिक राजा थे, तत्थ णं सेणियस्स रण्णो = उस नगरी में श्रेणिक राजा की, भज्जा कोणियस्स रण्णो = भार्या और कोणिक राजा की, चुल्लमाउया सुकाली = छोटी माता सुकाली, नामं देवी होत्था = नाम की रानी थी, जहा काली तहा = काली की तरह, सुकाली विणिक्खंता जाव = सुकाली भी प्रव्रजित हुई तथा, बहूहिं चउत्थ जाव = बहुत सारे उपवास आदि तप से, अप्पाणं भावेमाणी विहरड़ = आत्मा को भावित करती हुई विचरने लगी, तए णं सा सुकाली अज्जा = तब वह सुकाली आर्या, अण्णया कयाई जेणेव अज्जचंदणा अज्जा जाव अन्य किसी दिन जहाँ आर्यचन्दना आर्या थी वहाँ आई और कहने लगी-, " इच्छामि णं अज्जाओ! "हे आयें! मैं चाहती हूँ कि, तुम्भेहिं अन्भणुण्णाया समाणी आपकी आज्ञा प्राप्तकर, कणगावली तवोकम्मं = कनकावली तप को, उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए " अंगीकार करके विचरण करूँ ।"
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एवं जहा रयणावली तहा = जैसे आर्या ने रत्नावली तप किया, कणगावली वि= वैसे ही कनकावली तप भी किया । नवरं तिसु ठाणेसु = विशेषता यह कि तीनों स्थानों पर, अट्ठमाई करेइ = तेले का व्रत किया। जहा रयणावलीए छट्टाई जैसे रत्नावली तप में जहाँ बेले किये जाते हैं। एक्काए परिवाडीए संवच्छरो = एक परिपाटी में एक वर्ष, पंचमासा बारस य अहोरत्ता = पाँच महीने बारह अहोरात्र लगते हैं । चउण्हं पंच वरिसा = चारों परिपाटियों में पाँच वर्ष, नव मासा अट्ठारस दिवसा = नव मास अठारह दिन लगते हैं। सेसं तहेव = शेष वैसे ही। नव वासा परियाओ = नौ वर्ष पर्याय, जाव सिद्धा = यावत् सिद्ध हो गई ।। 7 ।।